“बलात्कार के दोषी कौन? “
प्रस्तुतकर्ता :- नरेंद्र मिश्रा
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आबादी वाला देश है और यहां अन्य देशों की तुलना में अपराध की दर भी अधिक है। बलात्कार भारत में चौथा सबसे आम अपराध है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2019 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में 32,033 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए या औसतन 88 मामले प्रतिदिन दर्ज किए गए। आए दिन बलात्कार की घटना में हम देखते हैं कि बाहर इतने बलात्कार होते हैं लेकिन जब घर में ही किसी के द्वारा किसी अपने का बलात्कार किया जाता है तो समाज में उस आदमी को सजा देने के लिए मामले दबा दिए जाते हैं और रात दिन उस औरत को कोसा जाता है जिसका बलात्कार हुआ है। उस औरत की अस्मत क्या इतनी सस्ती है कि उसे न्याय मिलने की बजाय जिंदगी भर का दर्द मिल जाता है। सामाजिक कलंक है बलात्कार लेकिन इस बलात्कार के दोषी होते कौन है? इस पर चर्चा कर रही हूं।
हमारे भारत में सबसे ज्यादा घटनाएं बलात्कार की है जिसमें नशा, पुरुषों की मानसिक दुर्बलता, महिलाओं का कमजोर आत्मविश्वास, एकांत में मवालियों का अड्डा, ढीला कानून, है। अभी तक की सारी रिपोर्ट देखी जाएं तो 85 प्रतिशत मामलों में नशा ही प्रमुख कारण रहा है। हमारे देश में नशा ऐसे बिक रहा है जैसे मंदिरों में प्रसाद। आपको हर एक किलोमीटर में मंदिर मिले ना मिले पर शराब की दुकान जरुर मिल जाएगी और शाम को तो लोग शराब की दुकान की ऐसी परिक्रमा लगाते हैं कि अगर वो ना मिली तो प्राण ही सूख जाएंगे। नशा आदमी की सोच को विकृत कर देता है। उसका स्वयं पर नियंत्रण नहीं रहता और उसके गलत दिशा में बहकने की संभावनाएं शत-प्रतिशत बढ़ जाती हैं। ऐसे में कोई भी स्त्री उसे मात्र शिकार ही नजर आती है।स्त्री देह को लेकर बने सस्ते चुटकुलों से लेकर चौराहों पर होने वाली छिछोरी गपशप तक और इंटरनेट पर परोसे जाने वाले घटिया फोटो से लेकर हल्के बेहूदा कमेंट तक में अधिकतर पुरुषों की गिरी हुई सोच से हमारा सामना होता है। पोर्न फिल्में और फिर उत्तेजक किताबें पुरुषों की मानसिकता को दुर्बल कर देती हैं और वो उस उत्तेजना में अपनी मर्यादाएं भूल बैठता है और यही तनाव ही बलात्कार का कारण होता है। ईश्वर ने नर और नारी की शारीरिक संरचना भिन्न इसलिए बनाई कि यह संसार आगे बढ़ सके। परिवेश में घुलती अनैतिकता और बेशर्म आचरण ने पुरुषों के मानस में स्त्री को मात्र भोग्या ही निरूपित किया है। यह आज की बात नहीं है बल्कि बरसों-बरस से चली आ रही एक लिजलिजी मानसिकता है जो दिन-प्रतिदिन फैलती जा रही है। मणिपुर में महिलाओं जो निर्वस्त्र कर करके घुमाया गया उनके साथ बलात्कार करने वालों को कड़ी से कड़ी सजा होनी चाहिए। अगर वो छूट गए तो हर हाल में नारियों की हार होगी और बलात्कारियों के हौसले बुलंद होंगे। हमारी सामाजिक मानसिकता भी स्वार्थी हो रही है फलस्वरूप किसी भी मामले में हम स्वयं को शामिल नहीं करते और अपराधी में व्यापक सामाजिक स्तर पर डर नहीं बन पाता। महिलाओं का अगर आत्मविश्वास प्रबल हो तो कोई भी पुरुष उनसे टक्कर नहीं ले सकता।महिलाओं को शारीरिक रूप से सबल बनना चाहिए और वो मन से भी खुद मजबूत समझें।विपरीत परिस्थितियों से लड़ने की ट्रेनिंग उन्हें बचपन से ही मिलनी चाहिए। हमारा समाज लड़कियों की परवरिश इस तरह से करता है कि लड़की खुद को कमजोर और डरपोक बनाती चली जाती है। हमें अपनी बेटियों को निडर बनाना चाहिए। महिलाओं को अपने साथ अपनी सुरक्षा के साधन हमेशा साथ रखने के लिए हमें उन्हें जागरूक करना चाहिए। महिला अगर डरी-सहमी, खुद को लाचार समझती है तो उसे परेशान करने वालों का विश्वास कई गुना बढ़ जाता है। महिला की बॉडी लैंग्वेज हमेशा आत्मविश्वास से भरपूर होना चाहिए। अगर भीतर से असुरक्षित महसूस करें तब भी अपनी बेचैनी से उसे जाहिर ना होने दें, गांव और शहर के सुनसान खंडहरों की बरसों तक जब कोई सुध नहीं लेता है तब यह जगह आवारा और आपराधिक किस्म के लोगों की समय गुजारने की स्थली बन जाती है। फार्म हाऊस में जहां बिगड़ैल अमीरजादे इस तरह के काम को अंजाम देते हैं वहीं खंडहरों में झुग्गी बस्तियों के गुंडे अपना डेरा जमाते हैं। बड़े-बड़े नेता/अफसर/उद्योगपति लोग अपना फार्म हाऊस बना लेते हैं, और वहां हकीकत में होता क्या है ये कोई सुध नहीं लेता। यह जगह पुलिस और प्रशासन से दूर जहां इन लोगों के लिए ‘सुरक्षित’ होती है वहीं एक अकेली स्त्री के लिए बेहद असुरक्षित। महिला के चीखने-पुकारने पर भी कोई मदद के लिए नहीं पहुंच सकता। बलात्कार के 60% केस में ऐसे ही मामले सामने आए हैं। हमारे देश का कानून लचर है, ये सब मानते हैं। अगर कानून सख्त हो तो शायद अपराधिक मामलों की संख्या बहुत कम हो जाती। कमजोर कानून और इंसाफ मिलने में देर भी बलात्कार की घटनाओं के लिए जिम्मेदार है। देखा जाए तो प्रशासन और पुलिस कमजोर नही हैं, कमजोर है उनकी सोच और समस्या से लड़ने की उनकी इच्छा शक्ति। पैसे वाले जब आरोपों के घेरे में आते हैं तो प्रशासनिक शिथिलताएं उन्हें कटघरे के बजाय बचाव के गलियारे में ले जाती हैं। पुलिस की लाठी बेबस पर जितने जुल्म ढाती है सक्षम के सामने वही लाठी सहारा बन जाती है। अब तक कई मामलों में कमजोर कानून से गलियां ढूंढ़कर अपराधी के बच निकलने के कई किस्से सामने आ चुके हैं। कई बार सबूत के आभाव में न्याय नहीं मिलता और अपराधी छूट जाता है। अंततः आज हमें बलात्कार को धर्म, मजहब के चश्मे से नहीं देखना चाहिए। बलात्कारी कहीं भी हो सकते हैं, किसी भी चेहरे के पीछे, किसी भी बाने में, किसी भी तेवर में, किसी भी सीरत में।बलात्कार एक प्रवृति है उसे चिन्हित करने, रोकने और उससे निपटने की दिशा में यदि हम सब एकमत होकर काम करें तो संभवतः इस प्रवृत्ति का नाश कर सकते हैं।
पूजा गुप्ता
मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश)