प्राणी भौतिक हुए अलौकिक
तृप्त होते यह तर्पण से
सदा प्रेम बरसाते रहना
याद सभी को आते रहना।
पितृ पक्ष के अवसर पर सभी पुण्य आत्माओं को नमन
करते पितरों का सम्मान हम
प्रेम भाव झलकाते हैं
जो संस्कार और ज्ञान मिला उनसे
उनको याद कर दर्शाते हैं।
जल तर्पण कर पूर्वजों को
आत्मा तृप्त कर पाते हैं
सोलह दिन का यह पितृपक्ष
सुना पितर मृत्यु लोक में आते हैं।
कथा सुनी है पौराणिक एक..
दानी कर्ण जब मर कर गया धरा से
तब स्वर्ग लोक को उसने पाया
पुण्य आत्माओं के सामने भोजनऔर
कर्ण के सामने स्वर्ण भरा थाल ही आया।
हो दुखित तब पूछा इंद्र से
तब इंद्र ने यह बतलाया
दानवीर हो तुम कहलाते
स्वर्णदान किया तुमने
काश! अन्न दान तुम कर पाते।
दुखित कर्ण ने तब पूछा उपाय
करूं क्या अब जो भोजन मिल पाए
जाओ धरा पर पुनः एक बार
सोलह दिन रहो इस बार।
भूखे, रोगी ,गुरु ,ब्राह्मण को
करो सेवा मन चित लाय
अन्न दान करो जी भर कर
जिससे पितर प्रसन्न हो जाएं।
इस सोलह दिन की अवधि को
हम पितृपक्ष रूप में मनाते हैं
स्वर्ग गामी पितरों के लिए
श्रद्धा और प्रेम दर्शाते हैं।
देते आशीष वो सदैव खुश रहना
सुख समृद्धि से भरे रहना
जैसे हमें तृप्त किया है वैसे
सदा तृप्त तुम भी रहना।
शालिनी ओझा