जड़ -चेतन,कर्म-निष्कर्म, धर्म -अधर्म
हर प्राणी के आपने जीवन स्तम्भ।
वक्त निरंतर कर्मो का रखे है हिसाब
काल चक्र का है अंत ही आरम्भ।
सत्य की राह होती अधिक लम्बी परन्तु
असत्य, अधर्म क्षणिक भर की सुख प्राप्ति।
कहे कृष्ण अर्जुन से कुरुक्षेत्र युद्धभूमि मे
कर्म सर्वोपरि धर्म है अंत ही आरम्भ।।
गागर मे सागर भर सके कलयुग के मानव
संभव नही पर मिटा सके विशाल सागर।
समुन्द्र मंथन करके भी देख चुके देव दानव
मिले जो रत्न उस लीला के है अंत ही आरम्भ।।
मनुष्य तू भयभीत ना हो परिणाम से
कर नई शुरुआत अपने सच्चाई के मार्ग से।
हर पथ पर अर्जुन बन सारथी साथ मिलेंगे
असफलता पुनः शुरुआत क्योंकि है अंत ही आरम्भ।।
क्योंकि है अंत ही आरम्भ।।
सत्यरूपा तिवारी, अजमेर।