यह जीवन गुजर जाता है
बस! यही तलाशने में कि! आखिर तलाशना क्या था! और अंततः वह तलाश अक्सर सिमट जाती है केवल इसी तसल्ली में कि जो मिला है आख़िर ! वह भी तो कहां हमने साथ लेकर जाना। यही सच है कि एक दिन सब यही रह जाना है। इसीलिए जो मिला जैसा मिला जितना भी मिला बहुत है जीवन जीने के लिए उसे स्वीकार कर स्वयं प्रसन्न रहें औरों के लिए भी प्रेरणा बनें क्योंकि कोई रहे न रहे आपकी प्रसन्न रहने की जिम्मेदारी आपकी स्वयं की है दूसरों का उदाहरण देकर केवल हम स्वयं को तसल्ली देते और एक दूसरे का मनोबल क्षीण करने का कृत्य करते इसलिए सच को स्वीकार करने की पहल स्वयं से करना ही तो अनुभव है मेरे दोस्तों.दिन रात हम लेख लिखते पढ़ते सुनते क्या सिर्फ मनोरंजन के लिए. और एक बात य़दि हम स्वयं पहल नहीं कर सकते तो न हमें अपने नकारात्मक और क्षीण विचार प्रेषित करने का ही अधिकार है न ही किसी को प्रेरित करने का न ही किसी को दोषारोपित करने का क्योंकि आप जब कोई बात विचार ही क्यों न हो किसी के लिए भी बोलते चाहे मित्र, सम्बंधी,आपके पाठक गण उसकी नकारात्मक या सकारात्मक तरंगे अनुवांशिक रुप में उन सभी को प्रभावित करेंगी।फिर सोचिए हम कौन से शुभचिंतक कहलाए क्या है हमारे पास देने को जिसे हम अपने विचारों के माध्यम से उन सभी को परोस रहे जब हम स्वयं ऐसे तो दूसरों को भी वही देंगे.स्वयं के सोच मानसिकता एवं विचारों को इतना परिपक्व बनाएं कि आपसे जुड़ा प्रत्येक जन उससे प्रेरणा पाकर स्वयं को सकारात्मक विचारशीलता की कसौटी पर किसी हद तक अपने जीवन में खरा उतार सके । इसका सामर्थ्य भी हमीं में है बस खोजने की आवश्यकता है.गूगल पर नहीं मिलेगा .