आज हो रही कथा कलंकित
पुरखों के बलिदानों की –
सुलग रही है आज चिताऐ
बाप के अरमानों की
भारत की प्रत्येक बालिका
जब विदुषी कहलाती थी
भले निरक्षर रहती थी ‘
पर कुल का मान बढ़ाती थी
आन बान की खातिर वो तो
रणचण्डी बन जाती थी
पति के प्राणों की खातिर वो
यम से भी लड़ जाती थी
आज हो रही लुप्त कथायें
पन्ना के बलिदानों की
सुलग रही रही है आज चितायें
बापू के अरमानो की
अधिकारों हित द्वन्द हो रहा
कर्म यथोचित भूल गए
कुविचार कुमति पाखंड युक्त जन
राह थर्म की भूल गए
षडयंत्रों के चक्रव्यूह में
मर्यादा दम तोड़ रही
अहंकार सर चढ़कर बोले
मानवता मुख मोड़ रही
स्वाभिमान को भूल गए हैं
शर्म नहीं अपमानों की
सुलग रही है आज चिताये
वापू के अरमानों की
कुमारी यशा
कक्षा –9
केन्द्रीय विद्यालय इटावा
उत्तर प्रदेश