स्वातंत्र्य – समर की स्मृतियाँ
लिख करो लेखनी पुण्य हवन ।
जो शीश चढ़ा निज चले गये
उनको कृतज्ञ हो लिखो नमन ।।
जब नाम लिखो रणधीरों का
तुम अश्रु नयन में भर लेना ।
उन वीर प्रसूता जननी को झुक
एक नमन तुम कर देना ।
स्मरण रहे! तुमको मसिपथ
वे राष्ट्र यज्ञ की ज्वाला थे ।
जिसका उन्माद नहीं घटता
कुछ ऐसी अनुपम हाला थे ।
उनके शोणित का तापमान
अरि को पल में पिघलाता था ।
उनके पौरूष की ज्वाला में
रिपु कृमि समान जल जाता था ।
मातृ भूमि हित मिटने की
जलती थी जिनमें प्रखर अगन।
स्वातंत्र्य – समर की स्मृतियाँ
लिख करो लेखनी पुण्य हवन
जो शीश चढ़ा कर चले गये
उनको कृतज्ञ हो लिखो नमन ।।
रानी झाँसी का शौर्य लिखो
तात्या टोपे की लिखो कथा ।
लिख दो मंगल पाण्डेय का स्वर
कैसे जन्मा विद्रोह यथा ।
तू वृद्ध कुँवर का लिख साहस
नाना की लिख दे युद्ध रीति ।
बेगम हजरत का मान लिखो
क्या चली फिरंगी कुटिल नीति ।
उस दमन चक्र का दर्द लिखो
परतंत्र राष्ट्र की पीर लिखो ।
कोल्हू जुतता सावरकर लिख
काले पानी के वीर लिखो ।
वह जलियांवाला बाग लिखो
करुणा ने जहाँ किया क्रंदन।
स्वातंत्र्य – समर की स्मृतियाँ
लिख करो लेखनी पुण्य हवन ।
जो शीश चढ़ा निज चले गये
उनको कृतज्ञ हो लिखो नमन ।।
स्वतंत्रता के लिए रूधिर का
मूल्य माँगते बोस लिखो ।
आजादी की अग्नि शिखा के
मन का वह आक्रोश लिखो ।
अशफाक उल्ला रोशन बिस्मिल
का काकोरी काण्ड लिखो ।
हँस कर प्राण लुटाने का
उनका वीरत्व प्रकाण्ड लिखो ।
शेखर की पिस्तौल लिखो
अल्फ्रेड पार्क का रण लिख दो
अंतिम गोली शीश मारने
वाला भावुक क्षण लिख दो ।
लिखो ‘शहीदे आजम’ का वह
कालजयी बलिदान अमर ।
राजगुरू सुखदेव सहित
फांसी पर चढ़ता शेर- बबर ।
रावी तट की वह चिता लिखो
बन गयी राख जिसकी चन्दन।
कितनी बलिदान कथायें हैं
क्या क्या लिख दोगी क्षुद्र कलम ?
श्रद्धा से शीश झुका बस लिख
आँसू से भीगे शब्द- सुमन।
स्वातंत्र्य – समर की स्मृतियाँ
लिख करो लेखनी पुण्य हवन ।
जो शीश चढ़ा निज चले गये
उनको कृतज्ञ हो लिखो नमन ।।
देवेन्द्र सिंह
गाँव- छोटी बल्लभ
अलीगढ़, उप्र