धर्म के नाम पर करते
कत्ल इंसानियत का,
सत्ता के लिए धरते
रुप हैवानियत का।
लहू का दरिया
और लाशों के पहाड़
जो तुम बनाते जा रहे हो,
तुम्हे लगता होगा
शायद तुम अपनी ताकत
बढ़ाते जा रहे हो।
निरीह ,मासूमों की
खून से लथपथ लाशें
देख तुम मुस्कराते हो,
हर बार घायलों की
चीखों के बीच तुम
ठहाके लगाते हो।
तुम किसी वहम में हो शायद
कि हर बार ऐसा करके
तुम जीत जाते हो,
अपनी उस झूठी जीत पर
उसी राह पर एक कदम
और बढ़ जाते हो।
तुम्हारे हिंसक हमलों से
कुचले हुए लोग,
रोते बिलखते,दर्द से
कराहते हुए लोग,
तुम्हारे फासीवादी चोले के भीतर
छिपे तुम्हारे चेहरे को
पहचानने लगे हैं,
तुम्हारे अभेद्ध दुर्गों की
नींव हिलाने का
सामान जुटाने लगे हैं।
तुम अपनी जिन कुटिल
सियासी साजिशों पर
इतराते हुए फिरते हो,
अपनी सेनाओं और
हथियारों के बलबूते
बौराये से रहते हो।
वो सब मासूमों के
आंसुओं के सैलाब संग
एक दिन बह जायेंगे ,
वो कत्ल हुये इंसानों की
हड्डियों से
वज्र बना लायेंगे।
तुम्हारे हाथों से
कत्ल हुये लोग
हाथ लहराते हुये,
एक दिन तुम्हारी
सत्ता के निशानों
को मिटाते हुये,
तुम्हारी फासीवादी सत्ता से
टकराते हुए
तुम्हे नेस्तनाबूद करके
आगे बढ़ते हुए
नज़र आयेंगे,
और एक बार फिर
एक सुन्दर इन्सानी
निजाम बनायेंगे ।
डा.राजेश सिंह राठौर
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक
एवं विचारक