क्या करूं मैं प्रेम की व्याख्या
त्याग समर्पण से है भरा हुआ,
इतना ही बस कहना चाहूं मैं
संसार प्रेम के बिना कुछ भी नहीं
अनुभव कहता है यही, कि यहां
हर कोई बूंद बूंद प्रेम से भरा हुआ। ।
जन्म देने वाली मां ने सिखाया
निस्वार्थ ही प्रेम की धारा में बहना,
एक सूत्र में समान बंधकर रहना!
गृहस्थी संजो कर रखने वाली वह मां है!
जिसने अपने जीवन का बूंद बूंद प्रेम ,
स्नेह सब कुछ अपना समर्पित किया।।
संस्कारित करने वाले पिता ने भी
कर्म करना हमको सिखलाया
हर उत्तरदायित्व से अपने कर्मठ होकर
अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना !
परिस्थिति जो भी रही हो जीवन की,
बूंद बूंद प्रेम करना दायित्व से अपने हमको समझाया।।
हमारी जीवनदायिनी ये प्रकृति मां ,
संरक्षण करती है जो सदा हमारा
प्रेम करना भी हमें सिखाती है !
अपने अंदर बीज का सृजन कर
हमें बूंद बूंद प्रेम से अवगत कराती है।।
प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर मध्य प्रदेश