बेजुबां है ये पशु पक्षी सभी विचारे
बस प्रेम ही आपसे चाहते है सभी ,
जो कह नही सकते है दुख अपना !
उनपर सदा रखनी चाहिए जीव दया ।।
एक भाग अन्न का इनके लिए भी रख दो
बेजुबान है इन्हें भी कभी भोजन करा दो
आ जाए द्वार पे तुम्हारे प्रेम से यदि पशु ,
कभी इनको भी तुम पानी पिला दो ।।
क्यों मारो पीटो इनको बेकार ,
करते सभी से पशु प्रेम प्यार ये,
इनकी भी है एक प्रेम की भाषा !
पहचानो तुम करके इनपर जीव दया ।।
आबादी बढ़ रही हमारी है जब से
छीन लिया है हमने इनका जंगल ;
सही मायने में वही था घर इनका ,
प्रकृति मां भरती थी भोजन से पेट इनका ।।
आज घर घर आते है आस यही लेकर
कोई तो होगा भोजन देने वाला इनको !
आज कचरा खाने पर विवश हुए पशु ,
भोजन देकर कोई तो रखेगा जीव दया।।
हमें समझना होगा अब इनको
क्यों व्याकुल है हर पशु इतना !
ना भोजन न घर है कोई इनका
हम सबको रखनी चाहिए जीव दया।।
प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
मध्य प्रदेश