“कवितालोक साहित्यांगन” में हुई चित्र आधारित सृजन की सुंदर रचनाएं
रिपोर्ट – व्यंजना आनंद ‘मिथ्या’
पटल प्रभारी
आज के चित्र पर एक कुंडलियाँ
सच्ची बात कबीर की, पचा सके कब लोग।
मंदिर मस्जिद पर बने, विकट शोर संजोग।।
विकट शोर संजोग, ध्वनि विस्तारक मड़के।
उसे जगाते नित्य, शोर यह करके तड़के।।
सुनता मन की बात, सोच कब समझे कच्ची।
बहरा कब वो मित्र, बात मैं कहता सच्ची।।
अरुण दुबे
चित्राधारित सृजन
विधा : दोहा छंद
रस : वीर रस
भाई-चारा प्रेम का,देती है संदेश।
आई देखो ईद है,उत्साही परिवेश।।
गले लगाकर माँगते,दुआ एक ही आज।
कौमी होगी एकता,जातिपरक हर काज।।
जोश भरी संवेदना,उत्साही हर भाव।
एकात्मक प्रारूप में,कट्टरता ही चाव।।
संस्कारों के साथ ही,लेते ईदी संग।
जिसमें होते जातिगत,प्रेम भरे सब रंग।।
जोर शोर से बज रहे,भोंपू ऊँचे टेक।
अपने-अपने ज्ञान का,बना रहे आरेख।।
अनुराधा सुनील पारे
*विषय:- चित्र काव्य समारोह*
बाजे भोंपू भोर में,उठके बैठे लोग।
आँखे खोले सोचते,मिले कलेवा भोग।
मिले कलेवा भोग,शोर से जागी माई।
ऊँची सुन आवाज,नींद की हुई विदाई।
सुषमा कहती बात,ईश तो मानस साजे।
अंतर करना याद, नहीं की भोंपू बाजे।।
सुषमा शर्मा✍️इन्दौर
विधा- कुंडलियाँ
बजता भोपूं जोर से, देता है संदेश |
कौमी होगी एकता, सुंदर हो परिवेश||
सुंदर हो परिवेश, राम की माला जपते|
मोह लोभ सब छोड़, नयन में सपने सजते ||
कहे सरोवर साॅंच, भजन प्रभु का मन रमता|
भोपूं की आवाज, सदा ही सुबहो बजता ||
चित्र आधारित सृजन—-
ध्वनि विस्तारक यंत्र का, अनुचित करें प्रयोग।
कानूनी निर्देश पर, ध्यान न धरते लोग।
ध्यान न धरते लोग, उच्च स्वर नित्य बजाते।
न्यायालय की रोज, कई मिल हँसी उड़ाते।
स्थिति है गम्भीर, कार्य कुछ करें निवारक।
हर लें सब की पीर, बंद कर ध्वनि विस्तारक।।
*कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा/उन्नाव,
ध्वनि विस्तारक यंत्र बजाना, बुरा नहीं है।
कार्यक्रम को सफल बनाना, बुरा नहीं है।
पर मानवता के नाते ही, कुछ सोचें हम।
अपना ही परिवेश बचाना, बुरा नहीं है।
-जितेन्द्र मिश्र
लखनऊ, उत्तर प्रदेश।