जेष्ठ शुक्ल की तृतीया पर उदयपुर राज्य के मेवाड़ में
महाराणा उदयसिंह और जयन्ताबाई के परिवार में,
उदय हुआ था एक सूरज फिर से इस इतिहास में
वीर प्रतापी राजा वो जिसका जीवन बीता था सारा
अपनी मातृभूमि की सेवा और सत्कार मैं।।
मुगलों के प्रति अधीनता स्वीकार नहीं थी जिनको कभी,
आजादी क्या होती है बतलाया ये मुगलों की सरकार को
सिंह की दहाड़ रखने वाले वो वीर प्रतापी महाराणा थे
स्वराज्य की खातिर दूर रहे सदैव वे अपने परिवार से,
कई युद्ध जीत लिए थे उनकी दो धारी तलवार ने ।।
80 किलो का भाला लेकर जब वह युद्ध में जाते थे !
अपने एक ही बार से महाराणा शत्रु को मार गिराते थे,
चेतक साथ सदा रहता उनका वो छत्र पति कहलाते थे
गूंज उठा शौर्य से उनके मेवाड़ घराना फिर इतिहास में
हर हर महादेव के नारे संग भगवा की महिमा गाते थे।।
आज भी जब हल्दीघाटी का कही नाम पुकारा जाता है,
महाराणा प्रताप की वीरता का नाम जुबान पर आता है,
ऐसे वीर योद्धा को भी एक दिन वीरों की भाती जाना था ,
प्रकृति का नियम है यह काल के गाल में उसे समाना था !
वीरगति मिली प्रताप को तब , अकबर की आंख में पानी था।।
प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर, मध्य प्रदेश