गीतिका छंद
समांत- आने
पदांत- के लिए
मापनी
गालगागा गालगागा गालगागा गालगा
पास मेरे एक खत, आया बुलाने के लिए।
लग रहा है पत्र भेजा, आजमाने के लिए।
प्रेम नदिया की सदा ही, धार तो उल्टी बहे,
पंथ भारी है कठिन, सरि पार जाने के लिए।
प्यार जब परवान चढ़ता सूझता कुछ भी नहीं,
हर समय कोशिश करे दीदार पाने के लिएI
मूर्ख को विद्या पढ़ाना, व्यर्थ होता यूँ सदा,
पय पिलाना सर्प को, निर्विष बनाने के लिए।
“सत्य”यह जीवन हमें हरि से मिला उपहार में,
काम हम करते रहें,प्रभु को रिझाने के लिए।
सत्यप्रकाश शर्मा “सत्य”