गीतिका समारोह _362
समानंत_आने
पदांत_के लिए
मापनी
2122 2122 2122 212
शीर्षक : बेटी
कोख से बेटी पुकारे ये जताने के लिए।
आ रही हूँ मैं जहां को आजमाने के लिए।
है सजीला आसमां सतरंग सी है ये धरा,
आइना ले खूबसूरत सच दिखाने के लिए।।
मौन की तस्वीर थी मैं काल वो अब तो गया,
सोचती भी सुरमयी खुद को उठाने के लिए।
वेदना सहना कभी प्रारब्ध औ’ इतिहास था,
आज संबल बन रही नारी जगाने के लिए।
कंटको की राह थी चलना कठिन सा काम था,
आ रही हर राह से कंटक मिटाने के लिए।
मैं न चाहूँ नाम यश माँ लालसा है बस यही।
दूँ दिये सी ज्योति जगमग झिलमिलाने के लिए।
माँ तुम्हारी कोख का ऋण तो चुका सकती नही,
मैं करूँ तव नाम ऊँचा सिर झुकाने के लिए।।