मूल जनजाति से धर्म परिवर्तन के कारण परंपरा छीना जा रहा है- भोजराज

गरियाबंद। छत्तीसगढ़ सहित ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार हो रहे धर्मांतरण के विरोध में जनजाति समाज के लोग मुखर होकर विरोध करना शुरू कर दिए है, जनजाति समाज के लोगों का स्पष्ट कहना है कि जो लोग धर्म परिवर्तन कर रहे हैं, ऐसे लोगों को अनुसूचित जनजाति से हटा देना चाहिए, इस मुद्दे को लेकर जनजाति समाज अब आगे आना शुरू हो गया है।
जनजाति सुरक्षा मंच के बैनर तले धर्मांतरित व्यक्तियों को अनुसूचित जनजाति से बाहर किए जाने की मांग को लेकर सोमवार को गांधी मैदान में धरना प्रदर्शन के बाद नगर में रैली निकाली गई।
धरने को संबोधित करते हुए जनजाति सुरक्षा मंच के प्रदेश संयोजक, पूर्व विधायक भोजराज नाग ने कहा है कि देश की 700 से अधिक जनजातियों के विकास एवं उन्नति के लिए संविधान निर्माताओं ने आरक्षण अन्य सुविधाओं का प्रावधान किया था, संविधान की मांग अनूरूप भारत के वन क्षेत्र में प्राचीन काल से निवास कर रहे अनुसूचित जनजाति समुदाय जो भौगोलिक दृष्टि से विशिष्ट संस्कृति, बोली भाषा, परंपरागत न्याय व्यवस्था सामाजिक आर्थिक पिछड़ापन, संकोची स्वभाव को देखते हुए इन जनजातियों को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखकर इनके लिए न्याय और विकास को सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण एवं अन्य विशेष प्रावधान किए गए है। उन्होंने कहा कि इन जनजातियों को सुविधा एवं अधिकार अपनी संस्कृति आस्था परंपरा की सुरक्षा करते हुए विकास करने हेतु सशक्त बनाने के लिए दिए गए थे, लेकिन इन सुविधाओं का लाभ उन जनजातियों की स्थान पर वे लोग उठा रहे हैं, जो अपनी जाति छोड़कर ईसाई या मुसलमान बन गए हैं, दुर्भाग्य की बात है कि कुछ धर्मातरित लोग जो अपनी संस्कृति आस्था परंपरा को त्याग कर ईसाई या मुसलमान हो गए हैं, इन सुविधाओं का 80% लाभ मूल जनजाति के समुदाय से छीन रहे है, जो भी जनजाति अपनी परंपरा, रीति रिवाज और देवी देवता को नहीं मानता है, उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए, धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों को आरक्षण के लाभ से वंचित करने की मांग हमारी है।
राज गोड़ समाज के अध्यक्ष एवं विधायक डमरुधर पुजारी ने कहा कि भारत की जनजातियों को उनका हक मिलना चाहिए, धर्म परिवर्तन कर अनेक लोग फायदा उठा रहे हैं, अगर जनजाति धर्म संस्कृति सभ्यता और मान्यता को जीवित रखना है, तो उनके स्वधर्म को जीवित रखना होगा। कहा कि धर्म परिवर्तन कर पद में बैठे लोगों को चिन्हित करने की जरूरत है, जिससे इन्हें नौकरी से हटा कर बाहर का रास्ता दिखाया जा सके, जनजाति समाज को समय रहते सजग होना पड़ेगा।
पूर्व विधायक गोवर्धन सिंह मांझी, उदयनाथ बाबा, पन्नालाल ध्रुव , जनजाति सुरक्षा मंच के अध्यक्ष रामरतन मांझी इत्यादि ने कहा कि समाज अपने स्वधर्म को त्याग ना करें, यही हमारी जिंदगी है, जनजाति समुदाय के लोग प्रलोभन में आकर धर्म परिवर्तन ना करें, अनेक लोग धर्म परिवर्तन कर रहे हैं, इससे जनजाति समुदाय की विशिष्ट पहचान नष्ट भी हो रही है। अब समय आ गया है कि धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्तियों को बेनकाब करें। फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवा कर अनुसूचित जनजाति बने व्यक्तियों को की पहचान कर इन्हें अनुसूचित जनजाति की सूची से हटाया जाए।
इस अवसर पर श्रीमती लालिमा ठाकुर, नूरमती मांझी, तोकेश्वरी मांझी, सदाराम मरकाम, अमर सिंह कुंजाम, तान सिंह मांझी, अभिमन्यु ध्रुव, शीतल ध्रुव, ग्वाल सिंह सोरी, थानेश्वर कवर, धनंजय नेताम, भानु ध्रुव, अशोक ध्रुव, सनत मांझी, पारस ठाकुर, जितेंद्र मांझी इत्यादि उपस्थित थे।

जनजाति सुरक्षा मंच ने रैली और धरने में दिखाई ताकत-
गौरतलब है कि वर्ष 2009 में इस मांग के समर्थन में एक राष्ट्रव्यापी हस्ताक्षर अभियान चलाया गया, जिसमें पूरे देश से अनुसूचित जनजाति समाज के 28 लाख लोगों ने इस मांग का समर्थन किया, 18 जनवरी 2010 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल से जनजाति समुदाय के प्रमुख लोगों ने मुलाकात की और 28 लाख लोगों के हस्ताक्षर युक्त ज्ञापन उन्हें सौंपा, इस ज्ञापन में 1950 में बनाए गए नियम में संशोधन करने की मांग की गई, जनजाति सुरक्षा मंच ने अपनी एक सूत्रीय मांग को लेकर देशभर में कार्तिक उरांव के जन्म दिवस के मौके पर व्यापक जनमत अभियान प्रारंभ किया, जिसके अंतर्गत देश के 228 जिलों में कलेक्टर को राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा गए थे, वहीं 14 राज्य के राज्यपाल को इस मांग से अवगत कराते हुए ज्ञापन दिया गया था, गरियाबंद की आयोजित धरना और रैली में इस मुद्दे को लेकर जनजाति सुरक्षा मंच ने अपनी ताकत दिखाते हुए जिला मुख्यालय में प्रदर्शन किया। जिसमें बड़ी संख्या में विभिन्न जनजाति समुदाय के लोग शामिल हुए, रैली निकाली गई जो बस स्टैंड, मेन बाजार, तिरंगा चौक होते हुए गांधी मैदान में समाप्त हुई। इस एक सूत्रीय मांग को लेकर धरना और रैली में जनजाति समुदाय के लोगों के बीच गलत तरीके से आरक्षण का लाभ लेने वालों के खिलाफ जमकर नाराजगी देखी गई।

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