मुंबई से अपने गृह जनपद आजमगढ़ पधारे कवि, साहित्यकार रामकेश एम. यादव को यूनियन बैंक के कर्मियों ने पासबुक, एटीएम, चेकबुक, ग्राहक सेवा का लाभ देने के लिए
इस चिलचिलाती धूप में उन्हें और उनकी पत्नी को चार दिन दौड़ाया।
ग्राहक सेवा केंद्र के तहत बैंक कर्मी ने उनकी पत्नी को फर्स्ट पार्टी बनाकर उन्हें पैसे निकालने से वंचित कर दिया।
बिना पूछे बैंक कर्मी ने गलत तो किया ही और उसे सुधारने से सीधे इनकार कर दिया।
यूनियन बैंक सिकरौर अपने खाते दारों से इस तरह की गौरइंसाफ़ी बहुत पहले से करता आ रहा है। गाँव के सीधे -सादे लोग शिकायत करने और उनका सामना करने से बर्दाश्त कर लेना ज्यादा श्रेयष्कर समझते हैं यह उनकी सादगी और शराफत कही जाएगी जिसका बैंक कर्मी बेजा इस्तेमाल करते हैं। खातेदार रामकेश यादव का कहना है कि उस बैंक के एक कर्मी आ. दुबे ने जो उनके साथ दुर्व्यवहार किया उन्हें अविलम्ब वहाँ से हटाया जाए और पहले उन्हें इस आशय का प्रशिक्षण दिया जाय कि आम खातेदारों से बात कैसे करते हैं।
नारीमन पॉइंट स्थित यूनियन बैंक की हेड ऑफिस गंभीरता से इस पर न्यायोचित कदम उठाने की कृपा करे।
पब्लिक सेवा करना बैंक कर्मियों का प्रथम ध्येय होना चाहिए न कि अपने पद का बेजा इस्तेमाल करना चाहिए।