जद्दोजहद !

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वह जिसके पंख हैं,
उड़ सकता है जो,
छू सकता है गगन को।

कैसे रह सकता है कैद
पिंजरे की दीवारों के पीछे,
वह छटपटाएगा –
अपनी महत्वाकांक्षा के वशीभूत।

कैद की सलाखों से
अपना सिर टकराएगा।
वह लहुलुहान होकर,
थक कर हारकर
निढ़ाल हो गिर जाएगा।

लेकिन वह स्वप्न
जो उसने पाल रखा है,
अपने भीतर।
आकाश की ऊंचाई नापने का,
क्या उसे बिसर पाएगा ?

शायद नहीं!
इसीलिए वह तब तक
जारी रखेगा जद्दोजहद,
जब तक उसके फेफड़ों में
प्राणवायु है ,
और संजो सकता है ऊर्जा,
सजा सकता है अंतर्मन को।

डा. राजेश सिंह राठौर
वरिष्ठ पत्रकार एवं
विचारक।

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