पिछले कुछ दिनों से कुछ लिख नहीं पा रहा हूं। या लिखना ही नहीं चाहता। मैं स्वयं भी असमंजस में हूं। शायद मैं डरा हुआ हूं। समाज और देश का विद्रूप इतना भयानक है कि हमारे आसपास रहने वाले अपने पराए जो पिछले पचास साल से हमारे दुख सुख में साथ खड़े थे। तीखे तर्क वितर्क के बीच भी हम ठहाके लगाते हुए एक दूसरे के साथ रहते थे। आज अचानक सारा परिवेश बदल गया है। हर पल घटित होती नई नई घटनाएं, जैसे तेजी से कोई आकर मेरे सीने में खंजर घोंप देता है, हां कितने घाव सीने में लिए हुए बैठा हूं। कभी इतिहास के पन्नों से निकलकर गांधी सवाल करते नजर आते हैं, कभी भगत सिंह अपनी आंखों में सवालिया निशान लिए खड़े हो जाते हैं। हैरान-परेशान अशफ़ाकउल्लाह, राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद जैसे तमाम हमारे महानायक आकर कहते हैं, क्या हुआ हमारे संघर्षों और बलिदानों का? हमारे विचारों को क्यों नहीं अपनाया। वह कहते हैं हमने तो आजादी के साथ-साथ इस धरोहर को संभाल कर रखने और इसे विराट स्वरूप तक पहुंचाने का रास्ता भी बताया था। क्या हुआ? लेकिन मैं अनुत्तरित खड़ा हुआ उन्हें एकटक निहारता रहता हूं।तभी अचानक अखलाक आकर सामने खड़ा हो जाता है, डरा सहमा, प्राण बचाने की गुहार लिए हुए। पीछे से गुंडों की फौज हुंकारते हुए आती है, उसे बर्बरता के साथ कत्ल कर देती है, और मैं कुछ नहीं कर पाता। नजर चुराता हूं, उसकी मरी हुई आंखों के पीछे के सवाल से, जैसे वह पूछ रहा है कि क्या मेरे खाने और पहनने पर भी कोई कानून बना था? अगर मैं जानता तो मांस खाता ही नहीं। मैं उसे नहीं बता सकता कि यह कानून का राज नहीं है। हमारा संविधान, हमारा लोकतंत्र सब कुछ मर चुका है। देश आज अराजक गुंडों के हाथ में है। अखलाक से नजरे चुरा कर भागता हूं तो स्टेन स्वामी सामने खड़े हो जाते हैं, चेहरे पर मुस्कान ऐसी की जैसे कह रहे हो कि मैंने तो अपना काम कर दिया, तुम सब कायर हो। एक आदमी अगर तन कर जालिम सत्ता के खिलाफ खड़ा हो जाए, तो तानाशाहों के हाथ पांव फूल जाते हैं। वह कहते हैं कि देखा नहीं, मेरी बूढ़ी हड्डियों और बीमारी से कांपते हाथों और पैरों में भी हथकड़ी और बेड़ियां डाल दी थी। वह डरते हैं एक अकेले सच्चे आदमी से। जब एक आदमी से उन्हें डर लगता है तो तन कर खड़े हो जाओ लाखों की संख्या में। रात में सोते हुए मासूम तबरेज झकझोर कर जगा देता है, पूंछता है मेरा क्या दोष था, सिर्फ टोपी ही तो पहनी थी। अब कोई गिनती नहीं रह गई। कितने किस्से सुनाऊं। कौन मारा गया? कौन जेल में है? जो बहादुर हैं वह लड़ रहे हैं, जो कायर हैं वह डर रहे हैं। हम अमृत का पान किए हुए हैं शायद, हम कभी नहीं मरेंगे, क्या हम यही सोचकर लड़ाई से भाग रहे हैं? हम भाग रहे हैं सत्ता की ताकत और सत्ता संरक्षित गुंडों की ताकत से। लेकिन चीखें हैं कि पीछा ही नहीं छोड़ती। हां चीखें, भूख से मरती हुई संतोषी की चीखें, पहलू खान और जुनैद की चीखें। रात के अंधेरे में जलती हुई बलात्कार पीड़िता की चीखें। अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए आंदोलनरत मजदूरों, किसानों और छात्रों पर पुलिसिया बर्बरता से पीड़ितों की चीखें। शांतिपूर्ण आंदोलन करते किसानों की सत्ता की कारों से कुचलने की दर्दनाक चीखें। ये चीखें मेरे भीतर समा गई है। मुझे भागने नहीं देती, मैं भागना चाहता हूं। पर मेरी नादानी देखिए, भाग कर जाऊंगा कहां? चारों तरफ सत्ता के चौकीदार मुझे कत्ल करने के लिए खड़े हैं। हां मुझे कत्ल होना ही है, क्योंकि उन्हें मेरी जमीन चाहिए, मेरे जंगल चाहिए, मेरी नदियां, झीलें और पहाड़ चाहिए। यही सब तो उन्हें चाहिए। देश की सारी सरकारी, गैर सरकारी संपत्तियों पर कब्जा ही तो उनका लक्ष्य है, खेल पर्दे के पीछे से खुलकर सामने आ गया है। फासीवादी सत्ता के साथ दुनिया के बड़े-बड़े करेंसी ट्रेडर्स आपस में गलबहियां कर रहे हैं। हमने सामंतवाद की मार झेली है, वह अन्याय और जुल्म करता है। लेकिन यह पूंजीवाद बर्बरता की सीमाओं को लांघता रहता है। अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए वह दरिंदगी की सारी हदें पार कर जाएंगे। हम जानते हैं इतिहास के पन्नों में बहुत कुछ दर्ज है। मेरे भीतर भारी अंतर्द्वंद है। हम अपने बच्चों को कैसा भविष्य देकर जाएंगे। हमने आजादी को देखा है, लोकतंत्र को फलते फूलते हुए देखा है। आज सब कुछ समाप्त हो चुका है। न लोकतंत्र बचा है, न ही लोकतांत्रिक संस्थाएं। समाज अराजक हो कर मुक्त अट्टहास कर रहा है। झूठी, मक्कार, दानवीय सत्ता के साथ ईश्वर है। और हम ईश्वर की भक्ति को छोड़ने को तैयार नहीं है। यह ईश्वर उन्हीं का गढ़ा हुआ उनका अजेय हथियार है। हम इस बात को समझने को तैयार नहीं है। इसी ईश्वर के नाम पर उन्होंने देश में नफरत के बीज बोए थे, जो भयानक जंगलों में तब्दील हो गए हैं। चारों तरफ नफरत, चीखें और हाहाकार फैला हुआ है। कुछ बाकी बचा नहीं है, किसी भ्रम में मत रहिए कि कोई बचेगा। ये किसी को नहीं छोड़ेंगे, सब को नोच कर खा जाएंगे। बहन बेटियों को बलात्कार कर रात के अंधेरे में जिंदा जला देंगे। किसानों पर सरकारी गाड़ियां चढ़ाकर कुचल दिया जाएगा। तुम्हारे घरों पर बुलडोजर गरजेगा। तुम्हारा इतिहास और इतिहास के नायक तक बदल दिए जाएंगे। हम देख नहीं पा रहे हैं, आंख खोल कर देखेंगे तो पाएंगे कि आजादी के बाद की सबसे क्रूर और नृशंस सरकार हैं जो अपने ही नागरिकों को दास बना देने पर तुली है।
डा.राजेश सिंह राठौर
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक
एवं विचारक।