सावन बरसे क्या होता है / सन्तोष कुमार दुबे की कलम से
मेरी प्यास बड़ी चातक की, सावन बरसे क्या होता है?
अंतस से अंतस की बातें, नयनों से नयनों की भाषा।
पीड़ा रिस रिस सींचे सहमे, अपनेपन की नव परिभाषा।
किन्तु निठुर उर द्वार न खोले, नयनन बरसे क्या होता है?
प्रेम धरा की सोंधी खुशबू, रिश्तों की मृदु अकुलाहट है।
प्रेम नींव है घर की गहरी, प्रियतम के पग की आहट है।
प्रेम नहीं तो सोना-चांदी, आँगन बरसे क्या होता है?
राग-द्वेषमय जगत छलावा, झूठे नित्य भटकते सपने।
एक सभी का सुंदर साजन, बाकी सब कहने को अपने।
यदि उसके ही रंग न भीगे, फागुन बरसे क्या होता है?
मेरी प्यास बड़ी चातक की, सावन बरसे क्या होता है?
सन्तोष कुमार दुबे
अर्मापुर, कानपुर