बृजेश कुमार तिवारी ब्यूरो चीफ
उन्नाव (दैनिक अमर स्तम्भ), आज प्रकति का मिजाज अयसा बदला कि देखते देखते किसानो की सारी खुशियाँ खून के आँसुओं मे तब्दील होगये, ये हुआ कुछ इस कदर जब किसान अपनी संपूर्ण ऊर्जा, लगन, मेहनत के साथ महगाई की चक्की मे पिसते हुए, जंगली जानवरों, गाय, सुअर, बंदर, कीट पतिंगों आदि से अपनी फसल को बहुत मुश्किल के बाद तयार कर पाया था, अब बारी थी उसे दो वक्त की रोटी का सहारा मिलने का तब अचानक आज बेमौसम ने सब कुछ चौपट कर के रख दिया, ये हुआ इस कदर, बारिस, ओलों की बारिश किसान की फसल को बुरी तरह छत विछत् करके किसान के दिलों मे उत्पन्न हसलों को निस्त नामूद कर दिया, यह सब आज किसान अपनी आँखों से सारी अपनी बर्बादी देखता रहा तथा आँसू बहता रहा तो कही अपने नसीब को कोसता रहा तो कही प्रकति के इस खेल को भला बुरा कहता रहा आखिर होना क्या था खून के आँसू लिए अपने परिवार के साथ असहाय बना फिर घर मे दुबक बैठा, क्योंकि प्रकति पर किसका बस है, किसान की इस दयनीय दशा मे इसकी सुध लेने वाला सायद कोई नही है, कैसे किसान किस भरोसे पर खेती करेगा, कैसे उसके बच्चो को दो वक्त की रोटी, कपड़ा, पढ़ाई, लिखाई कैसे क्या होगा यह सब फिर भगवान भरोसे है,
आज हमारे देश मे संकट अगर है तो सिर्फ, किसान और जवान पर है जिनका जीवन मौत के चादर के नीचे ही रहता है हर वक्त इस विषय पर शासन को थोड़ासा तो जरूर ध्यान देने की जरूरत है, नही तो आने वाले वक्त मे नतो कोई जवान बनना चाहेगा, नही किसान