बुद्ध / मिठु डे की कलम से
बुद्धं शरणं गच्छामि,
धम्मं शरणं गच्छामि,
संघं शरणं गच्छामि।”
बुद्ध भगवान,
जन्में धन,वैभव,ऐश्वर्य के बिच ,
पग पग पर बिछें थे जहाँ सुख समृद्धि,
रूप ,रंग ,रस का सजा श्रृंगार,
यौवन की थी सदा बहार,
फिर कैसें जाग उठा ये विचार
संसार पर होने लगा संदेह,अविश्वास?
देखा तुमने जीर्ण-शीर्ण वृद्ध काया ,
व्याधिग्रस्त मानव की हाहाकार ,
जीवन के अंतिम सत्य से हुए अवगत, देखा जब मृतक की लाश ,
निकल गए तुम दूर देश,
कर गए गृह त्याग ,
पीछे रह गई सुंदर पत्नी अबोध बालक !!
देने लगे जगह-जगह उपदेश,
देखकर दिव्य रूप ,
मोहित होने लगे लोग ,
सुनने को नई बात चले आते पास तुम्हारे ,
घोर तपस्या कर तुम बने बद्ध भगवान!!
मिलता सुख दुख कर्मो का फल,
जीवन दुख का विस्तार,
दुख इच्छा का आधार,
जीत लो इच्छा को ,
मुक्ति मिलें दुखों से
जीवन हो आनंदमय !!
प्रतिध्वनि हुई धरती अंबर ,
गूंजी वाणी तुम्हारी ,
भारत, बर्मा, लंका, स्याम,
तिब्बत, मंगोलिया जापान, चीन
बनने लगे मठ मंदिर !!
भिक्षुणी, भिक्षुओं की बढ़ने लगे क़तार,
मुँड़ाकर सिर, पीला चीवर कर धारण,
मंत्रों का उच्चारण करने लगे !!
“बुद्धं शरणम् गच्छामि,
धम्मं शरणम् गच्छामि,
संघं शरणं गच्छामि।”
मिठु डे मौलिक( स्वरचित )
वर्धमान-वेस्ट बंगाल