विजय प्रताप शर्मा (ब्यूरो चीफ)
वाराणसी (दैनिक अमर स्तंभ) जैतपुरा थाना क्षेत्र के दोषीपुरा (Doshipura) में ताजिया के रास्ते के विवाद में शिया व सुन्नी समुदाय के लोगों में जमकर पथराव मामले को लेकर जिला व पुलिस प्रशासन के अधिकारी क्षेत्र पर कड़ी नजर रख रहे हैं। समय-समय पर चक्रमण करने के साथ ही आरोपितों की धर-पकड़ अभियान तेज हो गई है। सूत्रों के अनुसार सीसीटीवी फुटेज के आधार पर 40 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया है। अन्य आरोपितों की फुटेज से पहचान कर उनके यहां दबिश दी जा रही है। उधर, मामले की जांच में कुछ पुलिस अधिकारियों पर लापरवाही बरतने के आरोप में गाज गिर सकती है।
दोषीपुरा और आसपास के क्षेत्रों में कई थानों की फोर्स के अलावा पीएसी, आरएएफ और सीआरपीएफ के जवानों की तैनाती की गई है। खुफिया विभाग के अधिकारी भी क्षेत्र में डेरा जमाए हुए है। पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में हुई इस घटना पर शासन की कड़ी नजर है। आला अधिकारी पल-पल की खबरें ले रहे हैं। गौरतलब है कि ताजिया जुलूस के रास्ते के विवाद को लेकर शनिवार को शिया और सुन्नी समुदाय के लोगों में जमकर पथराव हुआ था। इस दौरान पुलिस जीप के साथ करीब दो दर्जन मोटरसाइकिलें क्षतिग्रस्त कर दी गई थी। इस घटना दोनों पक्षों से 50 से अधिक लोग घायल हुए थे। पुलिस ने अबतक डेढ़ सौ लोगों के खिलाफ बलवा समेत गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है। डीएम, पुलिस कमिश्नर लगातार स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं। इस मामले में शिया समुदाय के लोगों का आरोप है कि सुन्नी समुदाय के लोग बवाल की पहले से तैयारी करके आये थे। क्योंकि उनके पास पत्थर, ईंट पहले से थे।
दोषीपुरा में ताजिया के रास्ते का विवाद वर्षों पुराना है। यहां शिया और सुन्नी समुदायों में इससे पहले भी वर्ष 200, 2004, 2012, 2017 व 2022 में बवाल हो चुका है। आसपास के लोगों ने बताया कि दोषीपुरा मैदान की ओर से ताजिया लेकर जाने की अनुमति नही थी। इसके बावजूद सुन्नी समुदाय के लोग 20वां ताजिया लेकर मैदान तक पहुंच गए। शिया समुदाय के लोगों ने इसका विरोध किया गया तो जुलूस में शामिल लोग भिड़ गए और पथराव करने लगे। जवाब में शिया समुदाय के लोगों ने भी जमकर पथराव शुरू कर दिया। दोनों पक्षों के बीच काफी देर तक गुरिल्ला युद्ध चलता रहा। इस दौरान बड़ी तादाद में लोग लहूलुहान हो गए।
*अंग्रेजों के जमाने से चल रहा है दोनों पक्षों में विवाद*
दोषीपुरा में दो एकड़ जमीन के लेकर शिया और सुन्नी के बीच विवाद अपने आप में भारत के सबसे पुराने मामलों में से एक है। यह मुकदमा साल 1878 में उस समय शुरू हुआ था जब लॉर्ड लिटन भारत के गवर्नर जनरल हुआ करते थे। दुर्भाग्य यह है कि आज तक इसका कोई सर्वमान्य हल नहीं निकल सका है। जिस स्थान पर दोनों समुदायों के बीच विवाद हुआ है उस जमीन के मालिक पहले महाराजा बनारस हुआ करते थे। इसी जमीन पर शिया और सुन्नी दोनों अपना-अपना अधिकार जताते रहे हैं। शिया समुदाय के लोग कहते हैं कि महाराजा बनारस ने उन्हें धार्मिक कार्यों के लिए उक्त जमीन दान में दी है। दूसरी ओर, सुन्नियों का कहना है कि यह उनका पुराना कब्रिस्तान है। लिहाजा शियाओं को इस पर किसी भी तरह का धार्मिक आयोजन करने का अधिकार नहीं है। सुन्नी समुदाय लोग इस भूखंड पर अपने समुदाय के दो लोगों की कच्ची कब्रें होने का दावा करते आ रहे हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट दोनों कब्रों के सही होने का दावा खारिज कर चुका है।
दोषीपुरा में शिया-सुन्नी के बीच मुकदमा कई अदालतों में चला और सुलह-समझौते की कोशिशें हुई। प्रशसनिक स्तर पर भी दर्जनों बार पंचायत हुई लेकिन सारी कोशिश नाकाम साबित हुई। आज़ादी के पहले और उसके बाद भी दोनों समुदायों के बीच झगड़ा चलता रहा। साल 1976 में सुन्नी इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट गए। तीन नवंबर 1981 को शीर्ष अदालत ने इस मामले में फैसला सुनाया और सुन्नी हार गए। ज़्यादातर अदालतों में शिया सही माने गए। सुप्रीम कोर्ट ने बनारस जिला प्रशासन को निर्देश दिया था कि वो बाउंड्री वॉल बनवाएं और मैदान में मौजूद दो कब्रों को हटवाएं, लेकिन सबने हाथ खड़े कर दिए। सालों से यह तर्क दिया जा रहा है कि कब्रों को हटाने की कोशिश करने पर कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है। तब से लेकर अब तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई। तारीखें आगे बढ़ती गईं और मामला लटकता गया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट कई बार यह कह चुका है कि आपसी बातचीत से इसे सुलझाया जाय। सुन्नी समुदाय के लोग कहते हैं कि हमारी कब्रें हट नहीं सकतीं। शिया कहते हैं कि मुग़ल बादशाह शाहजहां अपनी बेगम मुमताज़ महल को पहले बुरहानपुर में दफनाया और बाद में ताजमहल में। जब उनकी कब्र हट सकती हैं तो यह कब्रें क्यों नहीं ? कुछ साल पहले यह तय हुआ था कि विवादित भूखंड पर शिया और सुन्नी दोनों अपने-अपने धार्मिक काम करें। लेकिन शिया समुदाय के लोगों का कहना है कि वो किसी भी कीमत पर सुन्नियों को इस भूखंड पर धार्मिक काम की इजाजत नहीं देंगे। हमारी तादाद बहुत कम है और यहां सुन्नी की ज्यादा। हमारी बातें भले ही अनसुनी की जाती हैं लेकिन अदालत हमेशा हमारे पक्ष में फैसला सुनाती रही है।