कनक कनक ना रहा जब सीता आई उसके सम्मुख।
संपूर्ण चमक शर्मा गई जब-जब दिखे सिया का मुख।।
पुष्प वाटिका में श्रीराम देखें सिया का कनक समान रूप।
चंद्रमा से उज्जवल अत्यधिक सौंदर्य से था जो निपुण।।
चंद्रमा की चमक भी ढलती जाए जब सूर्य हो प्रकाशमान।
सिया चमके संपूर्ण जगत में कनक रूप था अति महान।
हे चांद तू विरहिनी स्त्रियों के विरह का है प्रतीक।
पर सीता का प्राकट्य तो सारे जगत में है प्रफुल्लित।।
कनक सिया को कनक हिरण दिखाएं करें रावण हरण।
दुष्ट पापी का संपूर्ण विनाश तभी से हुआ था प्रारंभ।।
सोने की लंका फिर सिया ना भाए करे सदा श्रीराम स्मरण।
चूर हुआ घमंड रावण का वीर हनुमान ने किया लंका दहन।।
कनक महल सियाराम पधारे करें अयोध्यावासी अभिवादन।
शोभा की खान, सुशील, विनम्र सिया गुरुजनों को करे नमन।।
तुलसीदास कहे कर ना सकू सिया सौंदर्य मुख का वर्णन।
समस्त शब्द उपमा झूठी हो चुकी इनसे करू ना सौंदर्य वंदन।।
सत्यरूपा तिवारी, अजमेर।