श्यामल श्यामल भोर सुहानी है
सुबह रोशनी क्षितिज बिखेरी है।
आकाश की लालिमा धरती चूमे
चहचहाते पक्षी सुन्दर नभ में घूमे।।
मन प्रफुल्लित हो हर प्राणी का
साधु संत सन्यासी ज्ञान बिखेरे।
धूप,दीप, आरती मन्दिर की घंटी,
शंख ध्वनि चारों दिशाओं में गूंजे।।
आकाश धरती क्षितिज एक करे
संसार की मोह माया से जो है परे।
मिलन की बेला क्षितिज दिखाए
संध्या बेला भी अपनी रंग बिखेरे।।
ये मन भावनाओं का अदृश्य सागर है
उफान लिए आंसु बन नयन क्षितिज से बहे।
अपनी अपनी दृष्टिकोण लिए मनुष्य
जीवन मृत्यु के क्षितिज पर आकर ही मिले।।
सत्यरूपा तिवारी, अजमेर