दम्भ कपट अब आम है, करता नित इंसान ।
सत्य धर्म बोना हुआ, ह्रदय सबल शैतान ।।
पढ़ लिख सब ज्ञानी बने, शब्द सजे सम्मान ।
मानवता का मर्म हो, इतना रखना ध्यान ।।
कुछ तो ऐसा बोलिए , वाणी से अनमोल।
सुनने मे मीठा लगे, ज्यो मिश्री का घोल ।।
दूर भले तुमसे हुए , लेकिन मन है पास ।
होने का तेरा सदा , होता है आभास ।।
टूटा धागा नेह का , जुड़ता नही सकाम।
लौट कभी आती नही, वो रंगीली शाम ।
लाख यत्न रुकता नही , जन पर अत्याचार ।
देख दुखी मनुवा सदा , ये क्षोभित व्यवहार ।।
सम्पदा ठाकुर