आदि शक्ति महा दुर्गा मां की महिमा अपरंपार है ।
माता के जगराते में होती जिसकी जय जयकार है।।
प्राणियों की शक्ति स्वरूपा करती भक्तों का उद्धार है।
सृष्टि की बनकर पालक ,दुष्टों का करती संहार है ।।
लोक की प्रतिपालक बन जगजननी का अवतार है।
नारी शक्ति मातृशक्ति का जग में करती प्रचार है।।
धनुष खडग चक्र त्रिशूल से करती असुरों पर वार है।
ब्रह्मादिक शीश नवावें वह मां जग की पालनहार है।।
लेकर हाथ में खडग, मां करती दुष्टों पर चीत्कार है ।
गले में डाले मुंडों की माला, वृषभ पर होती सवार है ।।
मां जब आती रौद्र रूप में , नेत्रों से रिसती रक्त की धार है
देख मां के विकट रूप को,असुरों में होती हाहाकार है।।
जय माता दी कहने से मैया मिटता मन का अहंकार है
तेरे पावन आंचल का माता कोई न पाता पार है।।
कृपा की ज्योति जला दो मैया, तेरी शरण हम आए हैं
मुझ पापी को दर्शन दे दो मां ,जीवन में भरा अंधियार है।।
प्रियदर्शिनी आचार्य