नहीं बन सकती मैं तुम जैसी,
क्योंकि मैं तो तुमको जीती हूँ,
तुम हँसकर मिलते हो सबसे,
मैं विरह का हाला पीती हूँ।
नहीं बन सकती मैं तुम जैसी,
तुम्हें सब प्यारे लगते हैं,
मैं बस सोचती हूँ तुमको,
स्वप्न बस तुम्हारे सजते हैं।
नहीं बन सकती मैं तुम जैसी,
विशाल हृदय तुम्हारा है,
मेरे छोटे से इस दिल में,
साम्राज्य बस तुम्हारा है।
नहीं बन सकती मैं तुम जैसी,
क्योंकि मेरी चाहत अथाह है,
तुम्हारे प्रीत के हिस्से में,
बस थोड़ी सी मेरी जगह है।
नहीं बन सकती मैं तुम जैसी,
क्योंकि मुझे मैं ही रहना है,
संकीर्ण मेरी दुनियां है,
तुम पर ही जीना मरना है।
डॉ रीमा सिन्हा (लखनऊ )