हे ! ज्ञान के दाता विधाता, विधिना शरन में लीजिये।
निज दीन जानि निधान करुना, सिंधु करुना कीजिये।
हो वंदना हरदम अनोखी, कभी वंदना हो बन्द ना।
हो सब काम पूरे शुभ सदा, मन भावना अभाव ना ।
राह सच्ची सेवा की सरल हो, सु यश प्रेम दीजिये।
निज दीन जानि निधान करुना, सिंधु करुना कीजिये।
हे ! ज्ञान के दाता विधाता, विधिना शरन में लीजिये।
निज दीन जानि निधान करुना, सिंधु करुना कीजिये।
जन प्रेम की धारा प्रबल हो, नहिं दोष की संभावना।
बोली में मीठा स्वर बोलें, प्रियजन का हो अभाव ना।
भाषा सरल जीवन तरल हो,सु नीति मीत दीजिये।
निज दीन जानि निधान करुना, सिंधु करुना कीजिये।
हे! ज्ञान के दाता विधाता, विधिना शरन में लीजिये।
निज दीन जानि निधान करुना, सिंधु करुना कीजिये।
ऋतु तिवारी