मैं यादों में ही // जानेमाने लेखक सुखेंद्र कुमार माथुर की कलम से

यादों से बाहर मैं ना आना चाहता हूं,
उनमें ही मैं बस खो जाना चाहता हूं,
मुझे यादों में ही उलझा हुआ रहने दो।

आगोश में रहना याद बहुत आता है,
खामोशी से इजहार-ए-प्रेम सताता है,
मुझे यादों में ही…..

क्या वो साथ फिर मिल पाएगा मुझे,
जज्बात का गुल महक दे पाएंगा मुझे,
मुझे यादों में ही…..

अब तो यादों में ही खुशियां भरी है,
उम्मीदों,आशाओं की दुनियां रची है,
मुझे यादों में ही…..

आशिकों की ये क्या हालत हो गई,
अश्कों में डूबी जिंदगी मेरी हो गई,
मुझे यादों में ही…..

ए-बेवफा अब तू याद ना आया कर,
हृदय को मेरे यूं तू जलाया ना कर ,
मुझे यादों में ही…..

सुखेंद्र कुमार माथुर
जोधपुर (राज.)

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