मेरी करुण रूदन को सुनकर
तुम बार-बार जब आते हो
मेरी क्षुब्ध हृदय को पुलकित कर जाते हो
बार-बार अपने कर कमलों से
मेरी व्यथा को तुम छोटा कर जाते हो
मेरे अंतर्मन को जाने कैसे पढ़ लेते हो
अंधकार है मेरा जीवन फिर भी ना जाने
क्यों तुम आंचल में मुझे छुपा लेते हो
मेरे भीगे नैनो को हर क्षण सुख दे जाते हो
जैसे-नई कोपलें खिलती वैसे तुम मेरे
जीवन में नव प्रभात बन कर जाते हो ।।
ममता की क़लम से