ये झरोखे भी देखो लगते कितने प्यारे हैं
जो दिखाते सबको तरह-तरह के नज़ारे हैं
हां, ये वही झरोखे हैं जहां से देखने पर हर ओर अपनेपन की ख़ुशबू आती थी।
हां ये वही झरोखे हैं जहां से ताकने पर हर ओर रौनक ही रौनक नज़र आती थी।
देख सबके चेहरे की मासूमियत मन में खुशियां सी भर जाती थी,
कैसे उदासी भरे मन की सारी तन्हाई मानो झट से भाग जाती थी।
हां ये वही झरोखे थे जब नज़रों से नज़र भी मिल जाती थी,
आंखों ही आंखों से दिल की बातें दिल तक भी पहुंच जाती थीं।
अभी भी वहीं झरोखे हैं अब भी वही सुंदर खिड़कियां हैं,
पर जिन अब लगे शीशे हैं और उन लगे पर्दों के अंदर दबी खुशियां हैं।
समय का जैसे अब अभाव है किसी को किसी से ना लगाव है
बातचीत का दायरा सीमित है आपसी संबंधों में अब ठहराव है।
लेकिन इस रफ़्तार भरे जीवन में तुम हमेशा यह प्रयत्न रखना
लाख झरोखे बंद हो जाए सुंदर मन का झरोखा नित खुले रखना।
एक सुंदर सा व्यक्तित्व सदैव ख़ुद में संजोए रखना, दूसरों की ख़ुशी के लिए सदा ख़ुद को तत्पर रखना।
गर हो सके तो सबके दिल में सदा बने रहना ,बस सब के हित के लिए ख़ुद को खड़े रखना।
ज्योति महाजन