वो जाने वाला गया तो…
अकेला कहांँ गया ,
मन्नत,मुरादें ,हसरतें…
तमाम साथ ले गया ।
देखा था इक शज़र को जब
मैने जाते हुए…
ठंडी बयार के साथ… अपनी छांँव ले गया ।
पत्तों का खिलखिलाना…लेकर जाना तो लाज़मी था मगर…
परिंदों का चहचहाना…
गिलहरी की अठखेलियां भी
साथ ले गया।
रौनकें तमाम बावस्ता… सिर्फ़ उस शज़र थीं ,
इक हरे भरे चमन को..
वीरान कर गया ।
निवेदिता शुक्ला