नई भोर का भान हुआ है,
दीप्त नवल मन प्राण हुआ है।
खग गुंजित अम्बर अनंत पर,
रघुनन्दन गुणगान हुआ है।
घन अधरों से अमृत झरता
जीवन मधुरस पान हुआ है।
बूँदों की निर्झर मुक्ता माला
सुन्दरतम सुर तान हुआ है।
ग्रीवा शुष्क धरा की हर्षित
हरित वसन परिधान हुआ है।
चातक की टकटकी अहर्निश
स्वाति उदक सम्मान हुआ है।
खेत लबालब जलमय लोके
योगी वक का ध्यान हुआ है।
ॠतुरोहित नभ में श्रृंगारित
अनुपम फल विज्ञान हुआ है।
कंगना खनखन जोर पुकारे
कंत ह्रदय का टान हुआ है।
झूले महुआ डाल हिंडोला
रमणी तन रसखान हुआ है।
पूर्ण कला में शशि विराजे
पुन गुरुवर का मान हुआ है।
श्रम महता करके आलोकित
मास आषाढ़ अभिमान हुआ है।
अम्बुद गिरि की लुक्का छुपी
लो!विभावरी विहान हुआ है।
आतप तम आरोहण घूर्णन
विस्तृत वयस वितान हुआ है।
उदक-जल
ऋतुरोहित-इंद्रधनुष
अम्बुद-बादल
विभावरी-रात
आतप-तम-धूप छाया
आरोहण घूर्णन-आने का चक्र
वयस वितान-जीवन रूपी आकाश
डाॅ प्रियाँकी
जमशेदपुर