जिस्मों की ही चाहत में जाने !
क्यूं वो लोग अंधे हुए जाते हैं ?
फिरा करते हैं लेकर हाथों में हाथ
एक दूजे का सड़कों पर इस क़दर
फिर कहते हैं कि ! हमें इश्क है
न रोको कोई हम इश्क फरमाते हैं!
तोड़कर अक्सर वो सारी सीमाएं
होकर कैद उन चारदीवारियों में जब
प्रेम की पाकीज़गी पर फिर वही
बदनामी का ऐसा दाग़ लगाते हैं।
जिनके धब्बे उनके साथ जुड़े हर रिश्ते
के फटे पैबंदों पर साफ नज़र आते हैं।
बड़ी शान से फिरा करते हैं सरेआम
सभी को चीखकर ये बात बताते हैं,
कि ,वो प्रेमी हैं सच्चे जन्म- जन्म के,
और जन्म-जन्मांतर के अटूट नाते हैं।
ताज़्जुब देखें फिर हुज़ूर कुछ दिनों में!
जब उस रुहानी हवा का रुख बदलता है
जन्मजन्मांतर का ये प्रेमी जोड़ा सच्चा
फिर नया घोंसला बदलने को विवश हो
प्रवृत्ति से नई उड़ान भरने को मचलता है।
और फिर इस युग का वह सच्चा प्रेमी
प्रेम के नाम पर सिर्फ और सिर्फ अब
एक दूजे को ही बस छलता है..
क्या वाकई ! झूठ ,छलावे और वासना,
रुपी वायरस से व्याप्त इस हवा को
प्रेम का नाम देना उचित होगा
सिलसिला ये जो चल रहा है क्या यह
कभी खत्म नहीं होगा ..
जब तक इस स्वच्छ ,स्वस्थ और निर्मल
उस प्रेम की पराकाष्ठा का असली पर्याय
देह आकर्षण के स्थान पर आत्मिक बंधन
नहीं होगा ।
प्रेम सा प्रेम भी फिर किसी को नहीं होगा!
विडम्बना देखिए जरा! संसार की प्रेम को
केवल इतना ही जान पाता है..
दो चार बार की डेट्स पर मिलने को
यह पग़ला अज्ञानी सच्चा प्रेम बताता है।
सीमाशर्मा”तमन्ना”
नोएडा (उत्तर प्रदेश)