मनभावन सावन रिमझिम जब बरसती है।
यह सावन शिव सती संग नाता जोड़ जाती है।
धरा की हरितिमा पुनः नव आभा संग मुस्काती है ।
प्रकृति नव यौवना सी लजाती , प्रतीत होती है।
यह सावन मन को सदैव पावन कर जाती है।
आकांक्षा अंतर्मन की महादेव को सुनाती है।
अधरों पर जाप, मन में रहे संताप।
ज्ञान वस न हो कभी कोई पाप।
कर्म ना हो ऐसा, जो जीवन में अभिशाप
निष्कलंक, निष्कपट रहे देह और मन!
ओम नमः शिवाय! और महामृत्युंजय मंत्र से
हो आरंभ हमारे जीवन का प्रत्येक प्रभात
मुख से ना निकले अपशब्द! और कड़वी बात!
सावन की पवित्र बूंदों से धूल जाए मन का संताप
मधुर स्वभाव और वाणी से भरे सबके मन का कानन।
निज दोष को रख सकूं,बनाकर सदैव मन का दर्पण।
ऐसा निश्छल बना देना प्रभु इस सावन में मेरा जीवन
मन सावन में हो जाए, शिव-सती जैसा मन भावन।
दिपा माजी