।। – दम तोड़ती छात्र राजनीति – ।।

भारत जैसे विशाल देश मे युवा आबादी सबसे अधिक है। जिसकी भारतीय राजनीति में एक अहम भूमिका है । इस युवा आबादी का और उसकी क्रियाशीलता का कई राजनीतिक दल लाभ लेते है उन्हें अपनी विचार धाराओं के साथ जोड़ते है,यह युवा राजनीति उस क्षेत्र से प्रारम्भ होती है जहां पर चारो ओर से आई हुई छात्र – छात्राओं रूपी छोटी नदियां समुद्र रूपी विश्विद्यालय व महाविद्यालयों में आकर मिलती है जहां पर संघर्ष होता है भविष्य रूपी विराट शिखर पर पहुँच कर अपने नाम का परिचम फहराने के लिए गांवों से निकल कर कस्बो व शहरों में अपनी अपनी रुचि के अनुसार अपने व देश के भविष्य को गढ़ने का कार्य करते है , लेकिन आज के परिदृश्य में जिस प्रकार से छात्रों की राजनीतिक सोच व राजनीति के प्रति हो रहे दुर्व्यवहार छात्र राजनीति को दरकिनार करके भारत के भविष्य को अंधकार में डालना सरकार का क्रूर कृत्य सबके सामने देखा जा सकता है । जिस राजनीति से देश के महान स्वतंत्रता सेनानी शाहिद भगत सिंह , चन्द्रशेखर आजाद कानपुर के गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे तमाम क्रांतिकारी व देश के आजाद होने पर जितने भी नेता हुए वो सभी कहीं न कहीं छात्र राजनीति से जुड़े हुए थे। चाहे वे लोकनायक जय प्रकाश नारायण जी हो या डॉ राम मनोहर लोहिया जी हो और अन्य महान विभूति भारत मे हुए है ।
जब जब देशब्यापी छात्र आंदोलन हुए तब तब भारतीय राजनीति प्रभावित हुई है , जैसे कि आप जानते है कि 1975 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी ने छात्रों के साथ मे सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया था जिससे देश की सबसे मजबूत श्रीमती इंदिरागांधी जी की सरकार तक को उखाड़ फेंकने का काम किया था । बिहार से एक हुंकार ने छात्रों नौजवानों के जत्था सड़को पर निकल पड़ा था। बिहार से उठी एक आवाज पूरे देश के कोने कोने में फैल गई और आग बनकर भड़क गई थी । जिससे देश के कई जमीनी राजनेता राजनीति में आये बड़ी राजनीति के हिस्सा बने । इसमें प्रमुख लालू प्रसाद यादव,नीतीश कुमार,सुशील मोदी,रामविलास पासवान,शरद यादव,जैसे तमाम नेता राजनीति में आये । आज की छात्र राजनीति में बहुत परिवर्तन हो गए है व छात्र राजनीति के समक्ष कई चुनौतियां खड़ी हो गई है , जो छात्रों के जीवन को प्रभावित कर रहीं है ।आज छात्र राजनीति में अनिश्चितता का दौर चल रहा है ।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि छात्र राजनीति की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
तो छात्र नेतृत्व कॉलेज स्तर या विश्वविद्यालय स्तर पर छात्र छात्राओं की समस्याओं को कॉलेज प्रशासन तक पहुचने के लिए एक नेतृत्व की आवश्यकता महसूस हुई जो आज छात्र राजनीति के नाम से प्रसिद्ध हुई।
छात्र आंदोलन के जनक जर्मन यहूदी दार्शनिक हर्बट मर्क्युज ने छात्रों को क्रांति का सच्चा रास्ता प्रसस्त किया उन्होंने कहा छात्र न केवल संस्थाओं को ही बदल देंगे, अपितु स्वयं मानव की अभिव्यक्ति व मूल प्रवर्त्तियो तथा उनके लक्ष्यों और मूल्यों को भी परिवर्तित कर देंगे । कई विद्वानों ने माना है कि छात्र राजनीति देश के भविष्य को गढ़ने का कार्य करती है। देश के बड़े बड़े नेता छात्र राजनीति के हिस्सा रहें है,आज हम देख रहे है कि छात्र समुदाय का संगठित न होना , नेतृत्व अभाव व राजनीतिक दलों की तरफ आकर्षित रहना कुछ जगह हिंसा को अपना हथियार बनना व धनबल को प्रयोग करना छात्र राजनीति को बदनाम करके छात्र राजनीति को प्रभावित किया जा रहा है , शिक्षण संस्थाओं में असहिष्णुता, पक्षपात और नफरत के लिए कोई स्थान नही होना चाहिए । छात्रों को अपने अधिकारों के वारे में जागरूक होना चाहिए । आज विश्वविद्यालय जिस प्रकार से मनमाने तरीको से फीस बढ़ाने का कार्य कर रहे है टीचर कम होना,स्कोलरशिप न आना क्लास रोज न लगना जैसी तमाम समस्याओं व विश्वविद्यालयों में जिस प्रकार से भ्र्ष्टाचार हो रहे है व विश्वविद्यालय प्रशासन मनमाने व असंवैधानिक तरीको से छात्रों को डरा धमकाकर के छात्र राजनीति को दबाने का कार्य कर रही है जिसमे सरकार पूर्ण रूप से सहयोग दे रही है , मौजूदा सरकार को छात्रों को जबाब न देने पड़े उनके हको को दबाया जा सके कोई कॉलेजो में बसूले जा रहे अनैतिक फीसों पर बोल न सके कोई बहस व भाषणों के माध्यम से शिक्षा में सुधार की गतिविधियों पर अपने विचार न रख सकें तो ऐसे युवा दिमागों की अपनी सोच को विकसित करने के बजाय उन्हें गुलामी की राजनीतिक संस्कृति की ओर ले जाएगी ।छात्रों की राजनीति पर रोक लगाने को उचित नही समझना चाहिए क्योंकि उन्हें वोट देने के एक अच्छे नागरिक बनने के अवसर से वंचित करता है । एक छात्र को राजनीति पर बात करने राजनीति पढ़ने व एक संघ में राजनीतिक चर्चा करने एवम अपने साथी छात्रों के साथ राजनीति बहस करने निश्चत रूप से शांतिपूर्ण माहौल,अनुशासित व्यवहार और आज्ञाकारिता के लिए एक छात्र को परिसर के अवसर से वंचित करना अलोकतांत्रिक है।जैसा कि हम जानते है युवाओं को राजनीति की कम समझ होती है,राजनीति में भागीदारी उन्हें इसके वारे में बताती है राजनीति से दूर रहने के परिणाम स्वरूप देश मे वर्तमान घटनाओं के बारे में ज्ञान की कमी होती है । वहीं अगर छात्र डॉक्टर व इंजीनियर बन सकता है तो उसे एक राजनेता भी बनना चाहिए । विश्विद्यालय भविष्य के राजनेताओं के लिए नर्सरी है।छात्रों को चाहिए कि वो एक साथ आएं छात्र राजनीति के भविष्य को बरकरार रखने के लिए राजनीतिक पार्टियों से हट कर छात्रों को अपने अलग संगठन बनाना चाहिए। सभी को मिलकर एक साथ अहिंसा के रास्ते से छात्र राजनीति की बहाली की बात करनी चाहिए,और चुनाव आयोग को फैसला लेना चाहिए कि पार्टी के छात्र संगठनों को मान्यता समाप्त कर देनी चाहिए व सख्त हिदायत देनी चाहिए कि छात्र चुनावों में किसी भी राजनीतिक दल का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। या लिंगदोह की सिफारिशों के आधार पर ही चुनाव कराने की मांग के साथ छात्र बहाली की बात की जाए ,वर्तमान की चिंता व भविष्य का सवाल है कि जब शिक्षा से लेकर रोजी रोटी तक सभी मुद्दे राजनीति को ही तय करने है तो छात्र राजनीति से परेज क्यों ।
लेकिन इस सवाल पर न तो छात्र संगठन गम्भीरता से मनन कर रहे है न ही राजनीतिक दिशा तय कर रहे है न छात्रों में कोई राजनीतिक समझ विकसित करने में कोई पहल कर रहे है जिससे राजनीतिक पतन की पराकाष्ठा को भी पतिबिम्बित करता है , छात्र संगठन एक राजनीतिक दलों के पिछलग्गू बनकर रहे गए है । छात्रों को विशेष कर छात्र संगठनों व्दारा राजनीतिक चेतना विकसित करने की प्रवाभी पहल करनी चाहिए ताकि जिस पीढ़ी के हाथ मे राज्य और देश का भविष्य जाना है वह राजनीतिक रूप से परिपक्व हो सके ।।

एम.ए इतिहास
राहुल देव यदुवंशी छात्र कानपुर वि.वि

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