दैनिक अमर स्तम्भ
समय समय पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा एक अभियान चलाया जाता है जिसमें देश की एक बड़ी आबादी को सस्ता और कारगर इलाज मुहैया कराने वाले अभ्यासी चिकित्सकों के खिलाफ कार्रवाई की जाती है आम जन के साथ गहरे रिश्तों की डोर से बंधे ये लोग हर परिस्थिति में सेवक की तरह मरीजों का इलाज करते रहते हैं और मरीज तथा उसके परिजनों के साथ एक भावनात्मक रिश्ता भी बनाए रखते हैं। कोविड-19 जैसी भयानक महामारी के दौर में भी जब सभी डिग्रीधारक चिकित्सकों ने हाथ उठा दिए और घरों में कैद हो गये, तब शहरों से लेकर दूरदराज गांवों तक इन्हीं झोलाछाप कहे जाने वाले अभ्यासी चिकित्सकों ने अपनी जान की परवाह किए बिना देश को इस संकट से बाहर निकालने में अहम भूमिका निभाई और लाखों लोगों की जिंदगी को मौत के जबड़े से खींच कर वापस लाये।जिस की भूरि भूरि प्रशंसा दुनिया भर के देशों के साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन तक ने की। ऐसे में उनके साथ अपमानित और दंडित करने की यह कार्रवाई कतई उचित नहीं है। इसके विरुद्ध हमें एक पहल करने की जरूरत है।
जब देश की अधिकांश आबादी को सरकारें स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने में अक्षम साबित हो रही हों तो हमें उसका विकल्प तलाशने में कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए। देश की अस्सी प्रतिशत आबादी का इलाज आज भी इन्हीं अभ्यासी चिकित्सकों के द्वारा किया जाता है सरकारी आंकड़े चाहे जो कुछ बता रहे हों लेकिन असलियत यही है। सरकार जिन अस्पतालों और चिकित्सकों के दम पर आंकड़ों का बखान करती है दरअसल वो अस्पताल , सीएचसी,पीएचसी, वेलनेस सेंटर सब सफेद हांथी के अलावा कुछ नहीं हैं। और रही बात चिकित्सकों की उपलब्धता की तो ये मान लो कि सप्ताह में दो चार घंटे (कुछ एक अपवादों को छोड़कर) से अधिक नहीं होती। दवाओं की उपलब्धता न के बराबर,कुछ विटामिन या बुखार और दर्द की गोलियां पकड़ा कर बाकी मंहगी मंहगी दवायें बाहर से लेने के लिए लिख दी जाती है और बहुधा दवायें लिखने वाला चिकित्सक न होकर अस्पताल का कोई कर्मचारी होता है।
ये भ्रष्टाचार के दलदल में आकंठ डूबी हुई सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की सच्चाई है। अब निजी चिकित्सकों के क्लीनिक या हास्पिटल की बात कर लेते हैं। तो उसका हाल ये है कि चिकित्सा शिक्षा हासिल करने के बाद कोई भी चिकित्सक छोटे नगरों, कस्बों और गांवों में जाना नहीं चाहता है। वे सब बड़े बड़े शहरों में अपना आवास और क्लीनिक बनातें हैं। अगर कोई छोटे नगर या कस्बे में अपना क्लीनिक बनाता भी है तो दिन में कुछ घंटों का समय निर्धारित करता है। और बीमारी समय देख कर तो आती नहीं है, कभी भी कोई इमरजेंसी हो सकती है तब ऐसी परिस्थितियों में अगर मरीज को शहरों में बैठे बड़े बड़े डिग्री धारी चिकित्सकों तक ले जाना अपने आप में ही मरीज के लिए एक खतरा है क्योंकि शहरों की वह दूरी कम से कम 20 किलोमीटर से लेकर 100किमी तक हो सकती है कभी साधन नहीं मिलता, कभी पैसा नहीं होता। और मान लिया सामान्य मरीज (आम तौर से होने वाली संक्रामक बीमारी से ग्रस्त) ऐसे चिकित्सकों के पास पहुंच गया तो शुरुआत ही कम से कम दो हजार रुपए से होती है
चिकित्सक की फीस, मंहगी जांचें और मंहगी दवायें (ये पूरा एक लूट का तंत्र है), और यहीं से शुरू होता है उसके साथ लूट का सिलसिला। हमारे देश में गरीबी का आलम यह है कि एक बड़ी आबादी के लिए आज भी रोटी और पानी का इंतजाम नहीं हो पाया है। तो ऐसी परिस्थितियों में लोग अपने आस-पास मौजूद इन्हीं झोलाछाप कहे जाने वाले चिकित्सकों की शरण में जाते हैं दिन में,रात में,बरसात में, गर्मी में, सर्दी में हर समय गांव गली के हर घर तक मरीज को इलाज की सुविधा या ये कहें कि जीवन की गारंटी यही चिकित्सक करते हैं और फीस की बात करें तो जो मिल गया वही ले लिया ,नहीं है तो उधार भी चलता है। मतलब एक सामान्य विषाणु जनित बुखार का मरीज दो सौ रुपए से तीन सौ रुपए में ठीक हो जाता है। और वही मरीज बड़े बड़े डिग्री धारियों के चक्कर में फंसकर (डाक्टर्स,डायग्नोस्टिक, फार्मास्यूटिकल्स गठजोड़) बीस हजार से पचास हजार तक बर्बाद कर देता है गहने और खेत तक गिरवी रखना पड़ता है। ऐसे में जब अभी तक सरकारें सबको चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराने में अक्षम रही हैं और भविष्य में भी ऐसा कर पाने की कोई ठोस योजना भी नहीं है तो इन्हीं चिकित्सकों को प्रशिक्षित करके क्यों न इस पंरपरागत ढांचे को मजबूत और बेहतर बनाने की ओर कदम बढ़ाया जाये।इसकी पहल करते हुए इन्हीं अभ्यासी चिकित्सकों और इनके द्वारा इलाज की सुविधा हासिल करने वाले लोगों को संगठित रूप से सरकार से मांग की जाये कि__
शहरों की गरीब बस्तियों से लेकर दूर दराज गांवों, कस्बों में आम नागरिकों को चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराने वाले झोलाछाप चिकित्सकों को जन स्वास्थ्य सेवक का नाम दिया जाये।
बिना डिग्री, डिप्लोमा के चिकित्सा कार्यों में लगे इन लोगों को चिंहित कर स्थानीय सीएचसी और पीएचसी में 6 महीने का चिकित्सा कार्यों का प्रशिक्षण देकर सामान्य बीमारियों के इलाज के लिए प्रमाण पत्र दिया जाये।
प्रशिक्षण के बाद स्थानीय स्वास्थ्य केन्द्रों से संबद्ध करते हुये आपातकालीन परिस्थितियों में विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा टेली मेडिसिन की सुविधा दी जाये।
समय समय पर कार्यशाला आयोजित करके इलाज के नये नये तरीकों के बारे में बताया जाये।
चिकित्सा कार्यों में लगे इस तरह के अभ्यासी चिकित्सकों का पुलिस और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न बंद किया जाए।
इस तरह से समाज के लिए बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने और हजारों बेरोजगार युवाओं को रोजगार मुहैया कराने में सफल हो सकते हैं। इसके लिए एक संगठित लंबी लड़ाई की जरूरत है। सरकारें इस तरफ ध्यान देना नहीं चाहती हैं क्योंकि वो कारपोरेट के हाथों की कठपुतली बन कर काम कर रही हैं। कारपोरेट मुनाफे का आखिरी पैसा भी समेटने की जुगत में है, उसकी योजना तैयार है झोलाछाप चिकित्सकों पर कार्रवाई के पीछे एक बड़ी साजिश है बहुत जल्द चार पांच हजार रुपए वेतन पर बेरोगार युवाओं की फौज गांव गली मोहल्लों में दवा के बैग लेकर आपकी जगह लोगों का इलाज करते हुए मिलेंगे, उन्हें सरकारी संरक्षण भी प्राप्त होगा। तब ये अभ्यासी चिकित्सक अपने आप घरों में बैठ जायेंगे। लूट के इस खेल के पीछे की साज़िश को समझते हुए अपने व्यवसाय, अपनी पहचान और अपनी परंपराओं को बचाने के लिए एक संगठित लड़ाई की पृष्ठभूमि तैयार करनी होगी।
डा. राजेश सिंह राठौर
प्रदेश सह सचिव
आल इंडिया सेंट्रल कौंसिल
आफ ट्रेड यूनियन्स उत्तर प्रदेश।