झूठ फरेब करना है, तो राजनीति में जाइए,
सच का गला घोंटकर, कुर्सी पर मुस्काइए।
वादों की माला गढ़िए, सपनों के फूल खिलाइए,
जनता के दर्द पर, बस भाषणों की दवा लगाइए।
यहाँ सत्य का नहीं कोई मोल,
झूठ के सिक्कों से चलता है खेल।
धर्म-जाति का जाल बिछाइए,
नफरत के बीज हर ओर उगाइए।
वादे जो किए, उन्हें मत निभाइए,
सत्ता की भूख में, बस आगे बढ़ जाइए।
मंच पर खड़े होकर भाषण दीजिए,
पर पीछे से जनता को भूल जाइए।
राजनीति का यही है दस्तूर,
सच्चे दिल वालों को मिलती है चूर।
अगर ईमानदारी से जीना है,
तो राजनीति से दूर रहना है।
लेकिन सोचिए एक पल को जरूर,
क्या झूठ का सहारा है मंज़ूर?
अगर बदले इसे कोई सच्चा इंसान,
तो राजनीति बनेगी देश का अभिमान।
जे पी शर्मा / जर्नलिस्ट