द कश्मीर फाइल्स, फिल्म पर आंसू बहाने वाले लोगों को दिखाई नहीं दी छत्तीसगढ़ दंतेवाड़ा के आदिवासियों का नरसंहार.

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रिपोर्टर– जावेद अली आजाद

जिला कोरबा ब्यूरो(अमर स्तम्भ)। विवेक अग्निहोत्री निर्देशित फिल्म “द कश्मीर फाइल्स” फिल्म को जनता का भारी समर्थन मिल रहा है।फिल्म की शुरुआत भले ही बॉक्स ऑफिस पर कमजोर हुई थी,लेकिन दूसरे दिन से ही फिल्म के साथ देश की जनता जुड़ गई और फिर फिल्म धीरे धीरे तेजी से कमाई करने लगी।कश्मीरी पंडितों के साथ हुई घटना को बयान करती ये फिल्म दर्शकों को काफी पसंद आ रही है।आम दर्शक के अलावा भी कई सेलेब्स इस फिल्म की तारीफ कर चुके हैं।

फिल्म के कलेक्शन को लेकर विवेक अग्निहोत्री ने इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट किया है।इस पोस्ट में उन्होंने बताया है कि कश्मीर फाइल्स ने 7 दिन में ही कुल 106.80 करोड़ रुपये की कमाई की है।बता दें कि फिल्म आने वाले दिनों में और भी तगड़ी कमाई कर चुकी है।फिल्म को वीकेंड का फायदा मिल सकता है।लगातार फिल्म को दर्शकों का प्यार मिला है फिल्म लगातार कमाई का रिकॉर्ड तोड़ा।

भारत में अनेकों प्रकार के राजनीति पार्टियां हैं पार्टियों के द्वारा तरह-तरह के राजनीति हथकंडे अपनाए जाते रहे हैं कभी धर्म के नाम पर कभी वोट के नाम पर इसी प्रकार अब फिल्मों में भी धर्म के नाम पर अभिनेताओं के द्वारा फिल्मी स्टाइल पर धर्म की राजनीति करते हुए लोगों को फिल्म के माध्यम से संदेश दिया जा रहा है। भारत देश धर्मनिरपेक्ष जातियों का समूह है। सभी को समानता से जीने का अधिकार है। परंतु बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि अभी भी धर्म के नाम पर कई तरह के फिल्म बनाए जा रहे हैं। विशेष रुप से कश्मीरी पंडितों को लेकर फिल्म बनाई गई है। अगर फिल्में बनानी है तो छत्तीसगढ़ राज्य के सुकमा दंतेवाड़ा आदिवासियों का जो नरसंहार किया गया उस पर क्यों अब तक फिल्म नहीं बनाई गई?

जाहिर सी बात है– अभी भी निम्न स्तर के और नीचे जातियों का खंडन किया जा रहा है। ऊंच-नीच की जाति की गणना करते हुए राजनीति की जा रही है इसी प्रकार सत्ता में बैठे राजनेताओं के द्वारा और फिल्म से जुड़े कुछ अभिनेताओं के द्वारा धर्म के नाम पर अपनी रोटी सेका जा रहा है और इसी के माध्यम से लोगों के दिलों में धर्म प्रचार को लेकर एक षड्यंत्र रचते हुए आमजनों से आने वाले समय में वोट बैंक बनाया रहा है।

द कश्मीर फाइल्स,फिल्म पर आंसू बहाने वाले लोगों को दिखाई नहीं दी छत्तीसगढ़ दंतेवाड़ा के आदिवासियों का नरसंहार.

सुकुमा के सिलगेर में सेना कैम्पों के लगने का शान्ति पूर्वक विरोध कर रहे आदिवासियों पर जवानों ने गोली चला दी, जिसमें 3 आदिवासियों की मौत हो गयी और 18 घायल हो गये।

छत्तीसगढ़ के सुकमा ज़िले में सिलेगर में सीआरपीएफ कैम्प लगने का तीन दिन से विरोध कर रहे ग्रामीण आदिवासियों पर जवानों ने बीते 17 मई को गोली चला दी। इस विरोध प्रदर्शन में बड़ी संख्या में महिलाएँ और नाबालिग़ भी शामिल थे। इस गोलीकांड में तीन आदिवासियों की मौत हो गयी, जबकि 18 घायल हो गये। स्थानीय लोग घायलों की संख्या दो दर्ज़न से अधिक बता रहे हैं। हद तो इस बात की है कि पहले पुलिस आईजी ने मारे गये आदिवासियों को नक्सली करार दे डाला, तो दूसरी ओर प्रदेश सरकार द्वारा मृतकों के आश्रितों को मुआवज़े की पेशकश भी की गयी। सवाल यह भी उठ रहा है कि 5000 लोगों के बीच में यदि तीन माओवादी भी हों, तो क्या पुलिस उन तीनों को बिना निशाना चूके मार सकती है?

यह सर्वविदित है कि छत्तीसगढ़ में लम्बे समय से आदिवासियों के साथ अत्याचार हो रहा है। इन लोगों की शिकायतें भी थानों में नहीं सुनी जातीं और जब मर्ज़ी इन्हें पुलिस, सीआरपीएफ के जवान और वास्तविक नक्सली रौंदकर चले जाते हैं। सदियों से अत्याचार के शिकार आदिवासियों की ख़ता सिर्फ इतनी है कि ये लोग सीधे-सादे हैं और जल-जंगल-ज़मीन को बचाने की कोशिश में लगे रहते हैं। अब तक सैकड़ों आदिवासियों को बिना कारण के मौत के घाट उतारा जा चुका है। ऐसे कई मामले सामने आये हैं, जिनमें पुलिस या सीआरपीएफ के जवानों ने आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया। मरने के बाद उन्हें नक्सली करार दे दिया गया और बाद में अदालतों में यह सिद्ध हुआ है कि मार दिये गये लोग।

भीड़ पर अंधाधुंध फायरिंग

ग्रामीणों का आरोप है कि उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए यह सीआरपीएफ कैम्प बनाया जा रहा है, ताकि आदिवासियों की ज़मीन आसानी से छीनी जा सके। सीआरपीएफ कैप का विरोध रोकने के लिए ही आदिवासियों की हत्याएँ की गयी हैं।

लोगों का विरोध देखकर पुलिस और प्रशासन को आदिवासी प्रतिनिधियों से 23 मई को बातचीत भी करनी पड़ी, लेकिन न तो मृतकों के परिजनों को कोई बड़ा राहत पैकेज देने की घोषणा की गयी और न ही सीआरपीएफ कैम्पों को हटाने को लेकर कोई आश्वासन दिया गया। जब आदिवासियों पर जवानों द्वारा गोलियाँ दाग़ने का मामला काफ़ी तूल पकड़ा, तब मरने वालों को 10-10 हज़ार रुपये राहत के तौर पर देने की घोषणा की गयी। आदिवासियों ने रुपये लेने से साफ इनकार कर दिया। अब सवाल यह उठता है कि जब मारे गये लोग नक्सली थे, तो उन्हें राहत पैकेज क्यों दिया गया, जबकि दूसरा सवाल यह है कि क्या आदिवासियों के जान की क़ीमत सिर्फ 10 हज़ार रुपये है।

आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन

एक साल के अन्दर बस्तर सम्भाग में सीआरपीएफ के 30 से अधिक कैम्प लग चुके हैं, जबकि यह सम्भाग पाँचवीं अनुसूची में आता है और यहाँ कैम्प लगाने का कोई औचित्य नहीं बनता। पेसा एक्ट के अनुसार, बस्तर सम्भाग में ग्रामसभा की अनुमति लिए बग़ैर कोई निर्माण नहीं किया जा सकता। बावजूद इसके यहाँ पिछले एक साल से सीआरपीएफ के कैम्प बनाये जा रहे हैं। जब आदिवासी सुरक्षा बलों के कैम्पों का विरोध कर रहे हैं, तो उन पर सीधे लाठियाँ और गोलियाँ बरसायी जा रही हैं और उनकी हत्या की जा रही है। छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा इस तरह की बहुत सारी घटनाएँ पहले भी की जा चुकी हैं। सन् 2012 में सीआरपीएफ ने बस्तर सम्भाग के ही सारकेगुड़ा में 17 निर्दोष आदिवासियों को गोलियों से भून दिया था, जिसमें नौ छोटे बच्चे थे। ये सभी मृतक बीज पंडूम त्यौहार मना रहे थे। इस मामले में भी मारे गये लोगों को पुलिस ने माओवादी कहा था। लेकिन जब जाँच आयोग की रिपोर्ट आयी, तो उसने घोषित किया कि मारे गये लोग निर्दोष आदिवासी थे। जाँच आयोग की रिपोर्ट आने के बाद से आज तक किसी के ख़िलाफ़ कोई एफआईआर तक दर्ज नहीं हुई है।

रमन सिंह की राह पर भूपेश बघेल

संविधान के अनुच्छेद-244(1) पाँचवीं अनुसूची से अधिसूचित क्षेत्रों में ग्रामसभाओं की भूमिका को अनदेखा कर छत्तीसगढ़ में आदिवासियों पर शोषण, अत्याचार किया जा रहा है। पाँचवीं अनुसूची के धारा-4(3)(क, ख, ग) अधिसूचित क्षेत्रों में प्रशासनिक व्यवस्था के संबंध में राष्ट्रपति एवं राज्यपाल की भूमिका को नज़रअंदाज़कर, ग्रामसभाओं की भूमिकाओं को बाईपास कर राज्य सरकारें मनमाने फ़ैसले ले रही हैं, जिसके कारण अनुसूचित क्षेत्रों में प्रशासनिक और कारपोरेट की दख़लअंदाज़ी बढऩे से आदिवासियों के अस्तित्व, अस्मिता, पहचान और उनकी सांस्कृतिक विरासत के ख़त्म होने का ख़तरा उत्पन्न हो गया है। बड़े पैमाने पर अनुसूचित क्षेत्रों में खनन, कारपोरेट, वन अभ्यारण्य इत्यादि के नाम पर आदिवासियों की ज़मीनें छीनी जा रही हैं।

इस मामले पर भी आदिवासियों पर आधारित “द दंतेवाड़ा फाइल्स” फिल्म अभी तक क्यों नहीं बन पाई? क्या छत्तीसगढ़ की जनता इस मामले पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया? क्या दी कश्मीर फाइल्स पर आंसू बहाने वाले लोगों को दंतेवाड़ा आदिवासी निवासियों की दुख दर्द एवं उनकी पीड़ा और उनके साथ हुए नरसंहार सोशल मीडिया पर दिखाई नहीं दिए? परंतु यह सब मामले को दरकिनार करते हुए सत्ता में बैठे अधिकारियों एवं नेताओं के द्वारा और समाज में गलत संदेश पहुंचाने वाले कुछ फिल्म के अभिनेताओं के द्वारा धर्म की राजनीति के गलियारों से होते हुए दंगे करवाने और लोगों के आपसी भाईचारे एवं सौहार्द को मिटाने में लगे हुए हैं।

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