रफ्ता रफ्ता चल रहा हर पल
रख रहा मुझ पर अपनी नजर
मैं कह रही हूं बस यही अब ,
मंज़िल है तो मुश्किल भी होगी !
रास्ते है तो रूकावटे भी होंगी ,
अब फर्क नहीं पड़ता कुछ भी
हार है तो फिर जीत भी होगी
जनाब जिंदगी इसी का नाम है
कभी आंधी है जज्बाती यहां ,
तो नम निगाहों से बरसात भी होगी ।
आम है ये किस्से मेरे तुम्हारे बहुत
आज बिछड़े है तो कल मुलाकात भी होगी ।
रुकता नही सफ़र रोकने से किसी के भी ,
समय का विकल्प तो समय ही है स्वयं खुद
आरंभ और अंत है जब हर कहानी का !
तो फिर एक नई शुरुवात भी तो होगी ।।
प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
मध्य प्रदेश ग्वालियर
महाराज बाड़ा
(यह मेरी रचना स्वरचित मौलिक अप्रकाशित सुरक्षित है।)