प्रेम विरह की अग्नि में,
मीरा गाए छंद ।
सूर ताल लय भाव से ,
स्वर में बाधे चंद।।1।।
मन विचलित हो ढूंढती,
पग-पग गली स्वछंद।
सूने पथ कान्हा मिले,
पाया सुख आनंद।।2।।
राजपाठ को त्याग कर,
हुई भक्ति में लीन।
माला जप रूद्राक्ष की,
एक तार आधीन।।3।।
दीवानी थी श्याम की,
घोर सहा अन्याय।
कठिन परीक्षा की घड़ी
श्यामा ही मन भाय।।4।।