कहानी प्यार की, जय श्री बिर्मी,अहमदाबाद

कहानी प्यार की

सीमा और विमल के प्यार के चर्चे उनके पूरे ग्रुप में खूब थे।दो दिल एक जान थे दोनों,कभी भी कुछ भी असहमति वाली बात उन लोगों के बीच होती ही नहीं थी। उनकी जोड़ी एक आदर्श जोड़ी थी।ऊंचा लंबा गोरा चीट्टा विमल कमदेव का रूप था तो गोरी चंपा वर्णी,हिरनी सी आंखो वाली,गुलाब की पंखुड़ी से होंठ और खुश मिजाज सीमा कोई भी अभिनेत्री से कम नहीं थी।सीमा का कुछ सूचन आया वही विमल को मंजूर था और विमल की कही कोई भी बात सीमा के लिए ब्रह्म वाक्य थी इतना प्यार कि शायद सच्चा नहीं लगे।दफ्तर में भी विमल जैसे काम से फुरसत पाता तो उसके खयाल में सीमा आके बैठ जाती।उसकी सुंदर आंखों में खो जाना विमल को बहुत पसंद था।दोनों जब बातें करते थे तो एक दूसरे में खो से जाते थे।दुनियां जहान को भूल जाते थे,रह जाते थे तो वे दोनों कामदेव और रती सी जोड़ी थी उनकी।इतने प्यार की कल्पना कोई भी कर नहीं सकता था उनके मित्रमंडल में।
दोनों सप्ताह के अंत की राह देखते थे,जैसे छुट्टी आती थी, वे दोनों कहीं घूमने चले जाते थे।कभी कोई मूवी देखना चले जाते थे तो कभी हाथों में हाथ डाले बगीचों में घूमने चले जाते थे। आसपड़ोस वालें भी उनसे थोड़ा इर्षाभाव रखते थे।
एकदीन जब विमल के दफ्तर में काम कम था तो वह सीमा को अचंभित करने घर जल्दी जल्दी पहुंचाना चाहता था।और उसने रिक्शा किया और पहुंच गया अपने घर।घर से थोड़ी दूर रिक्शा रोक कर उतर गया और घर तक चलके गया ताकि उसके आगमन का पता सीमा को नहीं चले।घर जल्दी पहुंचने की खुशी में दरवाजे पर लगी बेल नहीं बजा कर उसने हौले से दरवाजा खोला तो खुल गया और सीमा का नाम पुकारने ही वाला था कि उसे सीमा की आवाज सुनाई दी तो हैरान सा रह गया।सीमा किसी से कह रही थी ,”तुम्ही से तो बचपन से मैंने प्यार किया हैं,कभी भी तुम्हे मैं अपने दिल से निकाल नहीं पाई हूं।विमल से शादी सिर्फ मेरे माता पिता को खुश रखने के लिए ही की थी।हम ऐसे ही हफ्ते में दो तीन दिन मिलते रहेंगे और फिर कोई अच्छा दिन देख कर हम हमेशा के लिए मिल जायेंगे।”
इतना सुनना था कि वह दरवाजे से मुड़ गया और चल दिया पता नहीं कहां के लिए।बस चलता ही गया,चलता ही गया।
सीमा जब बाहर आई तो उसने अधखुला दरवाजा देखा किंतु वह कैसे खुला था उसके राज से नावाकिफ थी वह।आश्चर्य से दरवाजे को देखती रही किंतु समझ नही पाई कि उसी दरवाजे से उसका सच्चा प्यार बाहर निकल गया था।जो उसके पास था वह तो सिर्फ शारीरिक प्यार का देवता था।
शाम के छह बजने वाले थे तो उसने कुछ रसोई में काम कर विमल के आने की राह देख रही थी और वह राह देखती ही रह गई क्योंकि प्यार में धोखा खाने वालों की वापसी नामुमकिन होती हैं।

जयश्री बिरमी
अहमदाबाद

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