“कवितालोक साहित्यांगन” के गीतिका समारोह में “दिव्यालय एक साहित्यिक यात्रा” पटल के द्वारा सम्मानित रचना
मापनी
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गालगा गालगा गालगा गालगा
(२० मात्रा)
छंद का बिंब सागर बढ़ाते चलो,
जो सिखाया उसे तुम सिखाते चलो।।
ज्ञान बाँटो सभी को सिखाओ कला,
कर नमन देव गुरु को नमाते चलो।।१।।
लोभ मद से न तुम आज लाचार हो,
ज्ञान का ये पिटारा लुटाते चलो।।२।।
बाँटते-बाँटते मित्र संसार में,
मिल रहा मान उसको उठाते चलो।।३।।
कर चलो होम जीवन परम ज्ञान में,
तंतुओं को सुधारस पिलाते चलो।।४।।
भूख लिप्सा रखो साधना ज्ञान की,
लोक मे छंद गीता सुनाते चलो।।५।।
तुम सुनाते चलो गुनगुनाते हुए,
ग्रंथ वेदांत महिमा सजाते चलो।।६।।
चेतना गान स्वर्णिम पुनः गाइये,
बोल से छंद माला रचाते चलो।।७।।
अनुराधा सुनील पारे
जबलपुर