“कवितालोक साहित्यांगन” पर हुई गीतिका समारोह में “दिव्यालय एक साहित्यिक यात्रा” की ओर से श्रेष्ठ सृजनकार की चयनित रचना
आधार छन्द-वाचिक स्रग्विणी (मापनीयुक्त)
मापनी-गालगा,गालगा,गालगा,गालगा(20 वर्ण)
समान्त-आते,पदान्त-चलो।
मुश्किलों में सदा मुस्कुराते चलो |
भार अपने हृदय से हटाते चलो |
नित्य ही शाम के बाद आता तिमिर,
दीप बनकर डगर जगमगाते चलो |
स्नेह की डोर हो प्रीति का पालना,
रीति मनहर लगे तुम झुलाते चलो |
आज के बाद कब हो मिलन इस लिये,
नम्रता का बगीचा सजाते चलो |
पुष्प से दूर मधुकर कहाँ रह सके,
दंश देंगे भले तुम भुलाते चलो |
कौन कब छोड़ दे साथ इस राह में,
मोह है कष्टकारी बचाते चलो |
काम संबंधियों से न चलते सभी,
सन्निकट से निकटता बढ़ाते चलो |
शान्ति हो शौर्य हो राष्ट्र उत्थान भी,
गर्व से यह तिरंगा उठाते चलो |
कैलाशनाथ मिश्र