“कवितालोक साहित्यांगन” में हुई गीतिका समारोह में “दिव्यालय एक साहित्यिक यात्रा”की ओर से चयनित श्रेष्ठ सृजन
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प्रेम के दीप दिल में जलाते चलो
द्वेष के सब अँधेरे मिटाते चलो
दुश्मनी पाल के क्या मिला है किसे
हाथ तुम मित्रता को बढ़ाते चलो
काटकर पेड़ धरती उजाड़े सभी
वृक्ष फिर स्वर्ग करने लगाते चलो
ज्ञान धन बाँटने से हमेशा बढ़े
जो निरक्षर अभी है पढ़ाते चलो
मूल अधिकार मत का हमें है मिला
फ़र्ज़ समझो इसे सब निभाते चलो
आदमी नासमझ कर नशा मिट रहे
साथ ले राह अच्छी चलाते चलो
मुश्किलें साथ चलती अगर उम्र भर
हल करो जोश से मुस्कराते चलो
अरुण दुबे