“कवितालोक साहित्यांगन” की श्रेष्ठ सृजन हेतु हार्दिक बधाई
गीतिका छंद
मापनी –
212-212-212-212
गीत तुम प्रीत के आज गाते चलो
द्वेष अंतस भरा जो मिटाते चलो।
दुश्मनी कब मिटी इस जहां से बता
बीज तुम प्रीत के उर उगाते चलो।
फूल कांँटे रहे संग मिलजुल सनम
पाठ तुम एकता का पढ़ाते चलो।
चार दिन की सनम चांँदनी है मगर
सोचकर तुम न दिन यूंँ गँवाते चलो।
जिंदगी से मिली कब किसे है खुशी
सत्य को जानकर मुस्कुराते चलो।
कर्म अच्छा रखो ईश कहते यही
कर नमन ईश को सिर नवाते चलो।
भाव हो बिंब हो शिल्प सुंदर तभी
छंद मन मोहती है निभाते चलो।
ज्योति जैन’ज्योति’