*तीन सर्वश्रेष्ठ सृजक को दिव्यालय पटल ने किया सम्मानित*
*”कवितालोक साहित्यांगन”* में साप्ताहिक गीतिका छंद समारोह का आयोजन होता है, जिसमें समूह के कई साहित्य साधक एक से बढ़कर एक सृजन करते है । कल भी कई सुंदर उत्कृष्ट रचाएँ पटल की शोभा को बढाई ।
हमेशा की तरह *”दिव्यालय एक साहित्यिक यात्रा”* परिवार की तरफ से तीन सर्वश्रेष्ठ सृजनकार को पटल के संचालक व सर्वश्रेष्ठ समीक्षक “महेश जैन ज्योति जी” के द्वारा चयनित साधकों को सम्मानित किया गया, जिसमें
“विजय मिश्र दानिश जी ”
जलन कुढ़न बढ़ती है निश दिन,प्रेम नहीं परिवार में।
खड़ी हुई दीवार घरों में,स्वार्थ बसा है प्यार में।।
किस किस का इतिहास बताऊँ,सब की उल्टी चाल थी,
चुप रहना ही सबसे अच्छा,समझ बची इस सार में।।
“अमर अद्वितीय जी”
सत्य रहा है सदा सनातन, जगती के आधार में।
जीवनमय जीवन मिलता है, मानव को परिवार में।।1
पुण्य-पाप को समझ न पाए, जग में ज्ञानी संत भी।
जो दिखने में असार लगता, अर्थ निकलता सार में।।2
, “अरुण कुमार दुबे जी
क्या क्या नहीं अजूबा देखा, मैंने इस संसार में।
करें चिचोरी खड़ी योग्यता, अंधों के दरबार में।।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे, बातें करते ज्ञान की।
पड़ी मुसीबत योग छोड़कर , भागे वो सलवार में।।
दिव्यालय की संथापिका “व्यंजना आनन्द ‘मिथ्या ‘ जी ने सभी को बधाई दी साथ ही दिव्यालय के अध्यक्ष राजकुमार छापड़िया जी के द्वारा सम्मान पत्र भी वितरण किए गए । साथ ही कवितालोक के अन्य साधकों ने भी बधाई और शुभकामनाएँ दी ।