हर नया दर्द जो उभरता है उभर जाने दो।
दर्द की आख़िरी मंज़िल से गुज़र जाने दो।
बड़ी खामोशी से चुपचाप मैं सह जाऊँगी ।
अपने हालात किसी को ना बता पाऊँगी।
मैं घुटती हूँ ,धूआँ तो निकल जाने दो।
दर्द की आख़िरी मंज़िल से गुज़र जाने दो…
मेरी ख़ामोशी फिर मुझको ही तड़पायेगी ।
ज़ख़्म दे दे कर नासूर बनती जाएगी।
दर्द का हद से बढ़ना मुझे रुलाएगा।
तोड़ के बाँध सैलाब फिर आ जायेगा।
मेरे अश्क़ों को कुछ देर तो बह जाने दो।
दर्द की आख़िरी मंज़िल से गुज़र जाने दो…
हर नया दर्द जो उभरता है उभर जाने दो।
दर्द की आख़िरी मंज़िल से गुज़र जाने दो…
अलका गर्ग
गुरुग्राम