बूंद- बूंद बरखा की जब-जब गिरने लगे फुहार
मंद-मंद पड़े पानी और ठंडी-ठंडी चले बयार।
बस ! अब तेरा रस्ता देखे मेरे देहरी अंगना द्वार
आया सावन तू कब आयेगा,मुझसे पूछें सौ सौ बार।
जो प्रियतम उस पार है अब बस आ जाए इस पार
कागज़ की नावें चल पड़ी लिए साजन का प्यार ।
पत्ते -पत्ते पर लिख रहीं ये बूंदें देखो अपना हाल
पढ़-पढ़ कर विरहन की बातें, झुकी जा रही डाल।
हवा कह रही भोर से पगली खोल दे बंद किवाड़
सावन आ गया अंगना तेरे कर ले जी भर सत्कार।
चहूं ओर फैली हरियाली के, हाथों रोली अक्षत हार
ऐसे में कोई स्थिर रहे कैसे ,कोयल छेड़े गीत मल्हार।
तपती धरती पर पड़ रही ज्यों- ज्यों वर्षा की बौछार
डोले मन बावरा वसुंधा का, कर लेने को नया श्रृंगार।
सीमा शर्मा ( तमन्ना)
नोएडा (उत्तर प्रदेश)