अपनापन के बीज लेने गया था मैं बाजार। कुछ बचे थे उन्हें ले गए धर्म के ठेकेदार। इस दुनिया में जोर चल रहा झूठ का व्यापार। तेल मैं घी की गवाही देने को तैयार। अपनापन के बीज उगा कर खुशहाली कैसे पाए। झूठी हां में हां भरने वालों को कैसे हम समझाएं। कुछ लालच के पीछे लोग देते झूठी गवाही। जिस दिन झूठ की बाढ़ आएगी मचेगी तबाही। सदा दूध का दूध है और पानी का पानी। धर्मादे के पैसे खाने से बर्बादी है आनी। कर्मों की जब गांठ खुलेगी न चलेगी आनाकानी। अंत समय में अपने कर्मों से याद आएगी नानी। सच्चाई के साथ रहेंगे गजानंद ने ठानी। श्रीराम का ध्यान घरले नर मत बन तू अभिमानी।