एक ग़ज़ल // जानीमानी लेखिका व कवियित्री संगीता निगम की कलम से

निभाते हैं सरहदों पर जो जिम्मेदारियां अपनी।
वतन के वास्ते देते हैं वो कुर्बानियां अपनी।

रहें महफूज हम सब औ हमारे साथ हों खुशियां,
यही अरमान पाले वो मिटाते हस्तियां अपनी।

जो आती याद अपनों की तो छूते हैं वो माटी को,
तो माटी को लगाकर वो मिटाते दूरियां अपनी।

तमन्ना सरफरोशी की ही पाले हैं सदा मन में,
अमन औ चैन की खातिर जलाते बस्तियां अपनी।

कि फहराते हैं चोटी पर जो हिन्दुस्तान का परचम,
दिखाते हैं वो दुश्मन को सदा खुद्दारियां अपनी।

कि लिखते हैं लहू से वो शहादत की इबारत को,
लपेटे हैं तिरंगे में वो सारी मर्जियां अपनी।

संगीता निगम झाँसी

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